उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में जामा मस्जिद को लेकर एक बड़ा विवाद शुरू हो गया है। हिंदू महासभा ने दावा किया है कि जहां वर्तमान में जामा मस्जिद स्थित है, वहां पहले नीलकंठ महादेव का मंदिर था। इस मामले को लेकर कोर्ट में वाद दायर किया गया है, और आज, मंगलवार को सिविल जज सीनियर डिवीजन कोर्ट में इस पर सुनवाई होनी है।
यह मामला 2022 में तब शुरू हुआ जब अखिल भारत हिंदू महासभा के प्रदेश संयोजक मुकेश पटेल ने दावा किया कि जामा मस्जिद की जगह पहले नीलकंठ महादेव मंदिर था। उन्होंने यहां पूजा-अर्चना की अनुमति के लिए याचिका दायर की थी। सरकारी पक्ष और पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट के आधार पर मुकदमे में सरकार की ओर से बहस पूरी हो चुकी है और पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट भी अदालत में पेश की जा चुकी है। शम्सी शाही मस्जिद इंतजामिया कमेटी के अधिवक्ता असरार अहमद ने दावा किया कि मस्जिद करीब 850 साल पुरानी है और वहां मंदिर का कोई अस्तित्व नहीं है। हिंदू महासभा को इस मामले में याचिका दायर करने का अधिकार ही नहीं है।
साक्ष्यों के साथ अदालत में पेश हुए वादी पक्ष के अधिवक्ता विवेक रेंडर ने कहा कि उन्होंने मंदिर में पूजा-अर्चना की अनुमति के लिए अदालत में ठोस साक्ष्य के साथ याचिका प्रस्तुत की है। यह याचिका सुनवाई के योग्य है अथवा नहीं इस बात को लेकर आज मस्जिद कमेटी की बहस हुई है। शम्सी शाही मस्जिद को बदायूं शहर की सबसे ऊंची इमारत माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह मस्जिद देश की तीसरी सबसे पुरानी और सातवीं सबसे बड़ी मस्जिद है, जिसमें 23,500 लोगों के एक साथ नमाज अदा करने की क्षमता है। शम्सी शाही मस्जिद की मस्जिद समिति और वक्फ बोर्ड का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रतिवादी, वकील अनवर आलम और असरार अहमद ने शनिवार को बहस पूरी की।
याचिकाकर्ता के वकील विवेक रेंडर ने कहा कि उन्होंने अदालत में “ठोस सबूत” पेश किए हैं। रेंडर ने कहा कि वे मामले के चलने योग्य न होने के बारे में मुस्लिम पक्ष की दलीलों का भी जवाब देंगे। रेंडर ने कहा कि उनकी दलीलें खत्म होने के बाद हम भी इसका जवाब देंगे। उनका मानना है कि उन्हें अदालतों से न्याय मिलेगा। उल्लेखनीय है कि बदायूं में इस मामले में सुनवाई ऐसे समय में हो रही है जब गत 24 नवंबर को संभल में मस्जिद के सर्वेक्षण के बाद हिंसा भड़क गई, जिसमें प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच हुई झड़प में 4 लोगों की मौत हो गई थी और 25 अन्य घायल हो गए थे।