उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के पांचवें चरण के मतदान से पहले सियासी हलचल तेज हो गई है। इस हलचल की सबसे बड़ी वजह हैं कुंडा से मौजूदा विधायक राजा भैया। राजा भैया ने चुनाव से ठीक पहले घोषणा की है कि उनकी पार्टी, जनसत्ता दल, इस बार किसी भी दल को समर्थन नहीं देगी। इस घोषणा के कई मायने निकाले जा रहे हैं और इसे कई पार्टियों के लिए नुकसानदायक माना जा रहा है।

पांचवें चरण में उत्तर प्रदेश की जिन सीटों पर मतदान होना है, उनमें कौशांबी और प्रतापगढ़ की सीटें भी शामिल हैं, जहां राजा भैया का खासा प्रभाव है। राजनैतिक विचारकों का कहना है कि  राजा भैया का किसी पार्टी को समर्थन न देने का मतलब है कि उनकी बिरादरी का एकमुश्त वोट अब किसी एक पार्टी के खाते में नहीं जाएगा। यह फैसला भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) समेत अन्य दलों के चुनावी गणित को प्रभावित कर सकता है।
सीएम योगी के सत्ता में आने के बाद से राजा भैया ने भाजपा को अपना समर्थन दिया था, लेकिन इस बार मतदान से ठीक पहले उनका यह फैसला भाजपा के लिए भी चौंकाने वाला है। राजा भैया ने बुधवार को घोषणा की कि उनकी पार्टी जनसत्ता दल इस बार लोकसभा चुनाव में किसी भी दूसरी पार्टी को समर्थन नहीं देगी। उन्होंने अपने समर्थकों से अपील की कि वे अपनी समझदारी से उम्मीदवारों का चुनाव करें।
राजनीतिक पंडितों के अनुसार, राजा भैया का यह निर्णय कौशांबी और प्रतापगढ़ सीटों पर खास असर डाल सकता है। इन सीटों पर भाजपा और समाजवादी पार्टी (सपा) के
प्रत्याशी हैं, जिनके साथ राजा भैया के रिश्ते अच्छे नहीं रहे हैं। कौशांबी से भाजपा ने विनोद सोनकर को मैदान में उतारा है जबकि सपा ने पुष्पेंद्र सरोज को। पुष्पेंद्र सरोज पूर्व मंत्री इंद्रजीत सरोज के बेटे हैं। प्रतापगढ़ सीट से भाजपा ने संगम लाल गुप्ता को और सपा ने एसपी सिंह पटेल को उम्मीदवार बनाया है। सूत्रों के अनुसार, इन उम्मीदवारों के साथ राजा भैया के रिश्ते अच्छे नहीं हैं। विनोद सोनकर और इंद्रजीत सरोज समय-समय पर राजा भैया का खुलकर विरोध करते रहे हैं।
राजा भैया के इस फैसले के पीछे इन उम्मीदवारों के साथ उनके रिश्तों की खटास को प्रमुख वजह माना जा रहा है, हालांकि राजा भैया की ओर से इस पर कोई टिप्पणी नहीं की गई है।

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