2024 के लोकसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी (आप) ने एक बार फिर रामलीला मैदान का रुख किया है। लंबे समय बाद पार्टी ने इस तरह की महारैली का आयोजन किया है। यही रामलीला मैदान है जिसमें करीब एक दशक पहले भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन चलाने के बाद अरविंद केजरीवाल ने राजनीति में कदम रखा था। महज 10 साल में ‘आप’ ने दिल्ली और पंजाब जैसे महत्वपूर्ण राज्य में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई तो कई राज्यों की विधानसभा में दस्तक दी है। बेहद कम समय में पार्टी ने ना सिर्फ पंचायत स्तर से संसद तक अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है बल्कि राष्ट्रीय दल का दर्जा हासिल किया है। लेकिन पिछले कुछ समय में ‘आप’ के लिए मुसीबतों की बाढ़ सी आ गई है। सत्येंद्र जैन, मनीष सिसोदिया जैसे नेता को जेल, शराब घोटाले का शोर, बंगला विवाद, ट्रांसफर-पोस्टिंग के अधिकार का छिनना जैसे कम से कम 4 बड़ी मुसीबतों का पार्टी को एक साथ सामना करना पड़ रहा है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि केंद्र सरकार के अध्यादेश का विरोध करने के लिए आयोजित महारैली से पार्टी अपनी ताकत दिखाने के साथ यह संदेश देने की कोशिश करेगी कि इन सब विवादों के बावजूद जनता का विश्वास उसके साथ बरकरार है।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पिछले एक साल में ‘आप’ और केजरीवाल की छवि पर जोरदार प्रहार किया है। पहले कथित शराब घोटाले को लेकर घेराबंदी की तो फिर केजरीवाल के सरकारी बंगले पर 45 करोड़ रुपए खर्च का आरोप लगाकर दिल्ली के सीएम की सादगी वाली छवि को तोड़ने की कोशिश की। भाजपा हाल के समय में पोस्टर वार से लेकर गली-गली और घर-घर जाकर जनता को यह बताने का प्रयास किया है कि केजरीवाल का कट्टर ईमानदारी का दावा झूठा है। ऐसे में ‘आप’ की कोशिश है कि महारैली से लेकर नुक्कड़ सभाओं तक के जरिए भाजपा के अभियान की काट निकाली जाए।

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि ट्रांसफर पोस्टिंग को लेकर केंद्र सरकार की ओर से लाए गए अध्यादेश के खिलाफ अरविंद केजरीवाल की आक्रामकता असल में नैरेटिव बदलने की कोशिश है। पिछले कुछ समय में जिस तरह दिल्ली की राजनीति में शराब घोटाले, बंगला विवाद, सिसोदिया को जेल जैसे तमाम मुद्दे हावी हो गए थे उससे ‘आप’ को नुकसान की आशंका सताने लगी थी। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार दे दिया। केंद्र सरकार ने एक सप्ताह बाद ही अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी कर दिया। चौतरफा मुसीबतों से घिरे केजरीवाल ने अध्यादेश को दिल्ली की जनता के खिलाफ बताते हुए अधिकारों की नई जंग छेड़ दी। आप के एक नेता ने नाम सार्वजनिक नहीं करने की शर्त पर कहा, ‘पिछले कुछ समय में ऐसे विवाद जानबूझकर उछाले गए जिससे हमारे नेता की छवि धूमिल हो। इस बीच असंवैधानिक अध्यादेश लाकर दिल्ली सरकार का अधिकार भी छीन लिया गया। हमें जनता को यह बताना है कि केंद्र सरकार किस तरह केजरीवाल सरकार को कमजोर करने की कोशिश कर रही है। वह घोटाला-घोटाला जिल्लाकर जनता का ध्यान भटकाने की कोशिश करेंगे, लेकिन हमें दिल्ली की जनता को बताना है कि कैसे केंद्र सरकार उनका अपमान कर रही है। देखते हैं जनता किसकी बात पर भरोसा करती है।’

आम आदमी पार्टी  की महारैली को 2024 के लिए चुनावी बिगुल के रूप में भी देखा जा रहा है। अगले लोकसभा चुनाव में पार्टी पूरे दमखम के साथ उतरने की तैयारी कर रही है। पार्टी विपक्षी महागठबंधन में शामिल होगी या नहीं, यह पूरी तरह अभी साफ नहीं है। अध्यादेश के खिलाफ राज्यसभा में समर्थन जुटान के बहाने केजरीवाल विपक्षी दलों के साथ दोस्ती बढ़ाने में जुटे हुए हैं। इससे पहले ‘आप’ ने कई मौकों पर कहा है कि 2024 का चुनाव ‘मोदी बनाम केजरीवाल’ होने जा रहा है। ऐसे में आम आदमी पार्टी की पूरी कोशिश होगी कि रामलीला मैदान में ताकत दिखाकर ना सिर्फ भाजपा को जवाब दिया जाए बल्कि विपक्षी खेमे में अपनी दावेदारी को मजबूत किया जाए।

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Verified by MonsterInsights