इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भरण-पोषण के एक मामले में अपने महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि एक पति अपनी पत्नी को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण देने के लिए हर स्थिति में बाध्य है। भले ही उसके पास कोई स्थायी आय का स्रोत न हो। इसके अलावा अगर वह खुद को श्रमिक भी बताता है तो भी वह अकुशल श्रमिक के रूप में न्यूनतम मजदूरी के तौर पर प्रतिदिन लगभग 350 से 400 रुपए कमा सकता है।
उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति रेनू अग्रवाल की एकलपीठ ने कमल द्वारा परिवार न्यायालय अधिनियम की धारा 19(4) के तहत दाखिल एक आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए पारित किया है, जिसमें सीआरपीसी की धारा 125 के तहत परिवार न्यायालय, उन्नाव द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी गई थी। उक्त आदेश में जिला अदालत ने पति को भरण-पोषण के रूप में आवेदन की तिथि से पत्नी को 2000 रूपए प्रतिमाह देने का आदेश दिया था।
हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का हवाला देते हुए कहा कि पति अपने भरण-पोषण के दायित्व से बच नहीं सकता है। कोर्ट ने परिवार न्यायालय के आदेश को बरकरार रखते हुए रखरखाव बकाया का भुगतान पांच त्रैमासिक समान किश्तों में भुगतान करने का निर्देश दिया। याची के वकील ने तर्क दिया कि पति एक कारखाने में काम करके 10 हजार रुपए प्रतिमाह कमाता है जबकि पत्नी ने कोर्ट को बताया कि पति के पास कृषि भूमि है और वह अपने वेतन आदि से लगभग 50 हजार रुपए मासिक कमाता है।