विपक्षी एकता के लिए दिन रात एक कर देने वाले नीतीश कुमार का कहना है कि नरेंद्र मोदी कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे से डर गए हैं| इससे पहले कि स्थिति और खराब हो वह लोकसभा चुनाव करवा लेना चाहते हैं| इसलिए लोकसभा चुनाव इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों के साथ हो सकते हैं| उनका अंदेशा इसलिए भी है कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी की संगठनात्मक गतिविधियां कुछ ज्यादा ही बढ़ गई हैं|
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और प्रभारी बदले जा रहे हैं, भाजपा मुख्यालय में दस दस घंटे लंबी बैठकें चल रही हैं। सांसदों को तलब किया जा रहा है और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के दौरे बढ़ गए हैं| पहलवानों के आन्दोलन से लापरवाह चल रही सरकार अचानक सक्रिय हो गई| गृहमंत्री अमित शाह ने खुद दखल दिया है| उनके दखल के बाद आन्दोलन खत्म सा हो गया, पहलवानों की मांग के अनुसार 15 जून को चार्जशीट दाखिल हो गई| किसान आन्दोलन के समय मोदी सरकार साल भर सोई रही थी, लेकिन हरियाणा में सूरजमुखी की एमएसपी के लिए किसान सड़क पर बैठे, तो 24 घंटे में सूरजमुखी का एमएसपी घोषित कर दिया गया| नीतीश कुमार इन सब बातों को जल्द लोकसभा चुनावों का संकेत मानते हैं|
जो लोग यह मानते हैं कि भाजपा वक्त से पहले लोकसभा चुनावों की तैयारी कर रही है, उनका एक तर्क यह भी है कि मोदी सरकार लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एकसाथ करवाने की पैरवी करती रही है, इसलिए पांच विधानसभा चुनावों के साथ हरियाणा, महाराष्ट्र को भी जोड़ कर लोकसभा चुनाव भी साथ करवा सकती है| हालांकि कांग्रेस की तरफ से जल्द लोकसभा चुनावों की आशंका वाला कोई बयान नहीं आया है, लेकिन राहुल गांधी के ताबड़तोड़ दौरों से लगता है कि वह भी जल्द चुनाव की आशंका से ग्रस्त हैं| इसीलिए कर्नाटक में मुस्लिम तुष्टिकरण के एजेंडे को सबसे पहले लागू किया जा रहा है, ताकि अगर लोकसभा चुनाव जल्द आ जाएं तो मुस्लिम समुदाय का समर्थन बरकरार रह सके|
नीतीश कुमार और राहुल गांधी की आशंका के बावजूद, नरेंद्र मोदी और अमित शाह की तरफ से ऐसी कोई असामान्य गतिविधि देखने को नहीं मिल रही, जिससे लगे कि वे जल्द चुनाव के बारे में सोच रहे हैं| जहां तक भाजपा की संगठनात्मक गतिविधियों की बात है, तो जो लोग भाजपा पर निगाह नहीं रखते, उनके लिए यह असामान्य घटना हो सकती है| अन्य दलों से भाजपा में शामिल होने वाले नेता अक्सर प्राईवेट बातचीत में कहते हैं कि भाजपा वाले बैठकों में ही इतना थका देते हैं कि कोई एनर्जी नहीं बचती| बैठक, भोजन और विश्राम, ये संघ परिवार के सगठनों की सामान्य गतिविधियां हैं, इन गतिविधियों को कोई जल्द चुनाव के संकेत मान ले, तो यह उसकी अपनी समस्या है|
असल में बात कुछ और है| नीतीश कुमार जल्द चुनाव की आशंका व्यक्त करके कांग्रेस को डरा रहे हैं कि मोदी विधानसभा चुनावों के साथ ही लोकसभा चुनाव करवा कर विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस को धो कर रख देंगे| जिन पाँचों राज्यों में चुनाव हैं, उनमें महाराष्ट्र और हरियाणा भी जोड़ा जाता है, तो महाराष्ट्र और तेलंगाना को छोड़कर बाकी सभी राज्यों में कांग्रेस का भाजपा से सीधा मुकाबला है|
इसलिए नीतीश कुमार कांग्रेस पर दबाव बना रहे हैं कि विपक्षी एकता का जो माहौल बना है, उसे नहीं बिगाड़ा जाए| नीतीश कुमार को लग रहा है कि कर्नाटक जीतने के बाद कांग्रेस के स्वर बदल गए हैं, जो विपक्षी एकता के लिए घातक हो सकते हैं| आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच शुरू हुए नए टकराव को वह विपक्षी एकता के लिए सबसे बड़ा खतरा मानते हैं| नौकरशाही पर अधिकार को लेकर जारी हुए केंद्र सरकार के अध्यादेश ने विपक्षी एकता की संभावनाएं बढ़ा दी थीं। वह केजरीवाल जो कांग्रेस को टारगेट करके चल रहे थे, वह राज्यसभा में बिल के खिलाफ समर्थन के लिए कांग्रेस के आगे हाथ जोड़ कर खड़े थे, लेकिन राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे ने उन्हें मिलने का वक्त तक नहीं दिया|
केजरीवाल हालात के कारण कांग्रेस के सामने झुकने को तैयार हुए थे, वरना वह कांग्रेस और भाजपा से बराबर की दूरी वाला खेल ही खेल रहे थे| जब केजरीवाल को क्लीयर हो गया कि अध्यादेश के मुद्दे पर दिल्ली और पंजाब के कांग्रेसियों ने भांजी मार दी है, तो उन्होंने भी ऐसी शर्त रख दी कि जिसे कांग्रेस मान ही नहीं सकती| शर्त यह है कि कांग्रेस पंजाब और दिल्ली की सारी लोकसभा सीटें आम आदमी पार्टी के लिए छोड़ दे| यानि कांग्रेस इन दोनों राज्यों की बीस लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े नहीं करे| बदले में आम आदमी पार्टी मध्यप्रदेश और राजस्थान की विधानसभाओं के चुनावों में अपने उम्मीदवार खड़े नहीं करेगी|
केजरीवाल ने यह बात अपने खास सौरभ भारद्वाज से कहलवाई है और यह शर्त विधानसभा चुनावों में समर्थन के लिए है, लोकसभा चुनावों के लिए दूसरी शर्त होगी| केजरीवाल जिस तरह की तिकड़म करते हैं, उनकी शर्त कम से कम यह होगी कि कांग्रेस समेत गठबंधन की हर विपक्षी पार्टी को हर राज्य में आम आदमी पार्टी के लिए कम से कम दो सीटें छोड़नी होंगी| आम आदमी पार्टी को जबसे राष्ट्रीय दल का दर्जा मिला है, तब से केजरीवाल अपनी पार्टी को कांग्रेस को बराबर की पार्टी समझते हैं, और क्षेत्रीय दलों को अपने से नीचा| वह कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों को अपनी शर्तों के साथ टेबल पर लाना चाहते हैं, जिसकी पहली झलक उन्होंने कांग्रेस को दिखा दी है|
एक तरफ तो नीतीश कुमार समूचे विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश में जुटे हैं, दूसरी तरफ केजरीवाल ने मध्यप्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस के सामने ऐसी शर्त रख दी है, जो कांग्रेस के लिए आत्महत्या के समान है| उन्होंने साफ़ कहा कि या तो दिल्ली और पंजाब की सभी 20 लोकसभा सीटें आम आदमी पार्टी के लिए छोड़ दो, नहीं तो आम आदमी पार्टी राजस्थान और मध्यप्रदेश में कांग्रेस को वैसे ही हराएगी, जैसे गोवा और गुजरात में हराया था|
हालांकि पिछले चुनाव में मध्यप्रदेश में आम आदमी पार्टी को सिर्फ 0.4 प्रतिशत वोट मिला था, और राजस्थान में मात्र 0.7 प्रतिशत| लेकिन ऐसा तो उससे पांच साल पहले गोवा और गुजरात में भी हुआ था, लेकिन पांच साल बाद आम आदमी पार्टी ने गुजरात में कांग्रेस से 13 प्रतिशत वोट छीन लिए| केजरीवाल ने कांग्रेस को बुरी तरह डरा दिया है, अब उसके आगे कुआं और पीछे खाई है| और यह डर कांग्रेस से ज्यादा नीतीश कुमार को है, क्योंकि नीतीश कुमार का विपक्षी एकता करके प्रधानमंत्री बनने का सपना टूट रहा है| उन्होंने भाजपा को सौ सीटों से नीचे लाने की जो धमकी दी थी, वह तो उनके खुद के राज्य बिहार में ही दम तोड़ती दिख रही है|
बिहार में ही नीतीश का करिश्मा खत्म हो रहा है| जब से लालू यादव ने उन्हें प्रधानमंत्री बनने का सपना दिखाया है, और वह खुद को विपक्षी एकता की धुरी मानने लगे हैं, तब से उनकी खुद की पार्टी जेडीयू दरक रही है| पहले उपेन्द्र कुशवाहा उन्हें छोड़ कर गए थे, अब जीतन राम मांझी छोड़कर चले गए हैं| यह उनके भीतर का डर है, जो उन्हें लोकसभा चुनाव नजदीक आते दिखाई दे रहा है|
जबकि जो लोग नरेंद्र मोदी की राजनीति को समझते हैं, वे जानते हैं कि वह कोई भी काम अधूरा नहीं छोड़ते| न वह लोकसभा की अपनी टर्म अधूरी छोड़ेंगे| वह जनवरी में श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर का शिलान्यास करके और समान नागरिक संहिता का डंका बजा कर ही चुनाव करवाएंगे| कर्नाटक का संकेत नरेंद्र मोदी भी समझते हैं, इसलिए वह जानते हैं कि अगर विपक्षी दल मुस्लिम ध्रुविकरण के सहारे चुनावी रणनीति बना रहे हैं, तो उन्हें भी हिन्दू ध्रुवीकरण की रणनीति बनानी होगी| मोदी की अगली चाल सिर्फ समान नागरिक संहिता ही नहीं है, मोदी के तरकश में अभी बहुत तीर बाकी हैं|