यूपी में एक ओर सियासत अपनी बिसात बिछा चुकी है। हिंदु-मुस्लिम को पाटने का काम जोरों से किया जा रहा है। वहीं भादो माह के शुक्ल पक्ष तथा कृष्ण पक्ष की नवमी को सहारनपुर में हिंदू-मुस्लिम के प्रतीक जाहरवीर गोगा जी महाराज का मेला लगता है। जो हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक माना जाता है।

जिला मुख्यालय से करीब 5 किलोमीटर दूर गंगोह-मानकमऊ रोड पर स्थित गोगा म्हाड़ी पर तीन दिवसीय छड़ी मेला लगता है। वहीं तीन दिन बाद यह मेला मंडी समिति रोड स्थित लक्कड़ मंडी में लगता है। यह मेला भी करीब 15 से 20 दिन तक चलता है।

जिसमें हिंदू-मुस्लिम दुकानदार दूसरे राज्यों से आकर अपनी दुकान सजाते हैं। वहीं कई राज्यों से श्रद्धालु भी मेले का आनन्द लेने के लिए पहुंचते हैं। दैनिक भास्कर की टीम जाहरवीर गोगा जी की म्हाड़ी से ग्राउंड रिपोर्ट आपको पढ़वाएंगे…

भाद्रपद (गोगा नवमी) कृष्ण पक्ष को भरने वाला जाहरवीर गोगा जी महाराज का यह म्हाड़ी मेला करीब 800 साल से हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है। तभी से लगातार यह मेला चलता आ रहा है। लेकिन कोरोना काल ने इस मेले को भी ग्रहण लगा दिया था। लेकिन जाहरवीर गोगा में आस्था रखने वाले श्रद्धालुओं ने हार नहीं मानी। राजस्थान के बाद सहारनपुर में यह मेला बड़े स्तर से भरता है। जिसमें पश्चिमी यूपी, उत्तराखंड और हरियाणा के श्रद्धालुओं पहुंचते हैं। लोकल स्तर से एक दिन की छुट्‌टी रखी जाती है।

गंगोह-मानकमऊ मार्ग स्थित गोगा म्हाड़ी पर छड़ी मेले का दूसरा दिन रहा। मेले में हरियाणा, उत्तराखंड और पश्चिमी यूपी से श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। एक दिन में करीब दो से ढाई लाख श्रद्धालु छड़ी का निशान चढ़ाने के लिए पहुंच रहे हैं। घंटाघर से लेकर अंबाला रोड पर विश्रामपुरी काल भैरव मंदिर, यहां से गंगोह रोड पर म्हाड़ी तक चप्पे-चप्पे पर पुलिस व पीएसी के जवान तैनात हैं। इसके साथ ही दो एसपी, पांच सीओ, 12 निरीक्षक, 50 उपनिरीक्षक, 200 कांस्टेबल, 150 होमगार्ड, दो कंपनी पीएसी को लगाया गया है।

किसी भी वाहन को मेला स्थल की ओर जाने की अनुमति नहीं है। पुराना शुगर मिल से लेकर गोगा म्हाड़ी तक चार बैरिकेड लगाई है। वहीं छड़ी स्थल पर दर्शन करने जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए दो लाइन बल्लियों के द्वारा बनाई गई है। करीब डेढ़ किलोमीटर की श्रद्धालुओं की लाइन है। सड़क के दौनों ओर दुकानें सजी है। जो आज के बाद मेला गुघाल में शिफ्ट हो जाएंगी। नगर निगम से छड़ी मेले का बजट ही 26 लाख रुपए का पास किया है।

छड़ी मेले को लेकर महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों में काफी उत्साह है। बड़ी नहर से सभी पैदल म्हाड़ी स्थल पर पहुंच रहे हैं। म्हाड़ी परिसर में श्रद्धालुओं ने भंडारे का आयोजन भी कर रखा है। वहीं बच्चों के लिए झूले भी लगाए गए है। वहीं सड़क के दोनों ओर छड़ी का निशान भी बेचते दुकानदार देखे जा सकते हैं। इलायची दाना और मुरमुरे के प्रसाद की दुकान भी सजी है। जो जाहरवीर गोगा जी महाराज पर चढ़ाया जाता है।

भक्त पंकज उपाध्याय के अनुसार, करीब 800 साल से रीत है कि जाहरवीर गोगा महाराज को चने, प्याज चढ़ाया जाता है। लोग अपनी मन्नत के अनुसार झाडू़ भी चढ़ाते हैं। झाडू़ चढ़ाने से शरीर में होने वाले मस्सो से निजात मिलती है, ऐसा माना है। हालांकि जाहरवीर गोगा जी महाराज का एक स्थान देहरादून रोड पर भी है। जहां पर प्रत्येक गुरुवार को प्रसाद चढ़ाया जाता है। जो आर्मी के अंडर में है। जिसका चढ़ावा आर्मी के खाते में जाता है।

श्री शिव गोरख जाहरवीर सेवा समिति के संस्थापक पंकज उपाध्याय एवं मुख्य सरदार छड़ी के भक्त विनोद प्रकाश ने बताया, बाबा श्री जाहरवीर गोगा महाराज अक्सर गंगा स्नान के लिए हरिद्वार जाते थे। सहारनपुर में वह गंगोह मार्ग पर रुका करते थे। कबली भगत गंगोह मार्ग पर तालाब से मछलियां पकड़ रहा था तो जाहरवीर महाराज ने कबली भगत से कहा था कि मछली पकड़ने का काम छोड़कर म्हाड़ी बनवाकर पूजा करें। कबली भगत को चांदी का नेजा दिया था। तब कबली भगत ने म्हाड़ी का निर्माण कराया था। तभी से मेला भरता आ रहा है।

भक्त पंकज उपाध्याय ने बताते, बाबा श्री जाहरवीर का जन्म राजस्थान के चुरू जिले के गांव ददरेगा में हुआ था। चुरू जिले का नाम बाद में राजगढ़ हो गया। इनके पिता जेवर सिंह और माता बाछल थी। श्री जाहरवीर गोगा के जन्म से पूर्व उनके पिता जेवर सिंह को बाबा गुरु गोरखनाथ ने आशीर्वाद देकर कहा था कि तुम्हारे घर ऐसा पुत्र जन्म लेगा, जो दुष्टों का विनाश करेगा और धर्म की रक्षा करेगा। तब माता बाछल ने पुत्र को जन्म दिया, जिनका नाम श्री जाहरवीर रखा गया। प्राचीन काल में सहारनपुर के कस्बा सरसावा का नाम सिरसा पट्टन था और श्री जाहरवीर गोगा महाराज की माता बाछल यहीं की रहने वाली हैं। वह राजा कुंवरपाल की पुत्री थी।

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