श्रीकृष्ण जन्मभूमि- शाही ईदगाह मस्जिद विवाद मामले में शुक्रवार को दिए अपने फैसले में न्यायमूर्ति अरविंद कुमार मिश्र ने कहा कि यह मामला राष्ट्रीय महत्व के साथ संवेदनशील है। इसमें कानूनी प्रश्न भी निहित हैं। इससे पूरा देश प्रभावित होगा। इस वजह से यह मामला हाईकोर्ट यानी राज्य की सर्वोच्च अदालत में ही सुना जाना सही होगा।

न्यायमूर्ति अरविंद कुमार मिश्र की एकल पीठ ने शुक्रवार को यह फैसला भगवान श्रीकृष्ण विराजमान और सात अन्य की ओर से दायर याचिकाओं पर दिया है। इसमें मामले की सुनवाई हाईकोर्ट में किए जाने की मांग की गई थी।

पीठ ने श्रीकृष्ण विराजमान मंदिर कटरा केशव देव, खेवत मथुरा और अन्य सात की ओर से सभी मामले हस्तांतरित करने के लिए दायर अर्जी स्वीकार कर ली। याचिका में मांग थी कि अयोध्या में राम मंदिर मामले की तरह ही इस केस की सुनवाई भी हाईकोर्ट में की जाए।

हाईकोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद तीन मई को फैसला सुरक्षित रख लिया था। जस्टिस मिश्र ने मामले को मुख्य न्यायाधीश के पास भेजते हुए सुनवाई के लिए उपयुक्त पीठ नामित करने के भी आग्रह किया है।

कोर्ट ने आदेश में कहा है कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि मथुरा जो कभी महाराजा कंस की जेल थी, उसमें पूजा के अधिकार एवं उस पर बनी मस्जिद को हटाने का मामला दोनों धर्मों के करोड़ों हिंदू-मुसलमानों की भावना, आस्था व विश्वास से जुड़ा हुआ है। इसमें कानूनों व संविधान के अनुच्छेदों की व्याख्या की जानी है।
वक्फ और ट्रस्ट में भेद तय करना है। कोर्ट ने श्रीराम जन्मभूमि विवाद मामले का हवाला देते हुए कहा है कि अधीनस्थ अदालत में इस मामले के ट्रायल में देरी होगी। न्याय हित व वादकारियों का समय बचाने के लिए राम जन्मभूमि की तरह श्रीकृष्ण जन्मभूमि स्थल के मुद्दे का हल हाईकोर्ट में निकाला जाए।
कोर्ट ने यह भी कहा कि भगवान श्रीकृष्ण मानव रूप में जेल में प्रकट हुए। मान्यता है कि जेल पर मस्जिद बनी हुई है। यह अधिकारों व इतिहास का भी विषय है। इस पर प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 लागू होगा या नहीं, यह तय होना है। संविधान के अनुच्छेद 25, 26, और 300ए, सेवायत, जन्मस्थान जैसे कई सवालों के जवाब तलाशने होंगे। सभी मामले एक साथ हाईकोर्ट में सुने जाने से किसी के अधिकार प्रभावित नहीं होंगे।
हिंदू पक्ष के वरिष्ठ वकील विष्णु जैन ने कहा कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि एवं शाही ईदगाह मस्जिद के बीच 13.37 एकड़ भूमि के विवाद को लेकर मथुरा की अदालत में याचिका दाखिल करते समय 10 मुकदमे लंबित थे। अब कुछ और नए मुकदमें दाखिल हुए हैं। भूमि विवाद से संबंधित सभी मामलों की सुनवाई एक साथ हाईकोर्ट में होनी चाहिए। मुस्लिम पक्ष का कहना था कि जमीन अंग्रेजों ने नीलाम की थी और कुछ हिस्सा मस्जिद बनाने के लिए दिया था।

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