लखनऊ। उत्तर प्रदेश के कार्यवाहक डीजीपी विजय कुमार ने पुलिस आयुक्तों, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों को सख्त निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि कि अब किसी भी बच्चे को रात में थाने नहीं रख सकते है। बच्चे को थाने में रखने वाले पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।
दअरसल,राज्य बाल संरक्षण आयोग ने बच्चों को थाने में रखे जाने को लेकर डीजीपी को पत्र लिखा था। पत्र के मुताबिक यूपी के कुछ थानों ऐसे मामले सामने आए कि जहां पर बालक बालिकाओं को कई दिनों तक थाने में रखा गया है। इस पर राज्य बाल संरक्षण आयोग ने आपत्ति जताई थी।
आयोग की सदस्य डा. शुचिता चतुर्वेदी बालक बालिकाओं को थाने में रखा जाना एक्ट 2015 की धारा 8 (3) (i) के विरुद्ध है। पॉक्सो एक्ट के तहत किसी भी बच्चे को थाने में रखना अनुचित ही नहीं, विधि विरुद्ध भी है। इस पर संबंधित पुलिसकर्मी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। यदि रात में कोई बच्चा पुलिस को मिलता है तो उसे आश्रय गृहों में रखा जाए। जहां आश्रय स्थल नहीं है वहां वन स्टाप सेंटर में रखा जाए। इसी पर डीजीपी ने संज्ञान लिया है कहा है कि इन नियमों का कड़ाई से पालन करें।
दअरसल, शीर्ष न्यायालय ने एक आदेश पारित किया था कि सभी किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) को किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की ‘अक्षरश: भावना’ का पालन करना ही चाहिए और बच्चों के संरक्षण के लिए बने कानून की ‘उपेक्षा किसी के द्वारा नहीं’ की जा सकती, कम से कम पुलिस के द्वारा तो बिल्कुल भी नहीं । जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की खंडपीठ ने यह बात तब कही, जब उनका ध्यान दो घटनाओं और मीडिया में आए उत्तर प्रदेश तथा दिल्ली में नागरिकता कानून के खिलाफ हुए प्रदर्शनों से संबंधित कुछ आरोपों की ओर दिलाया गया, जो बच्चों को कथित रूप से पुलिस हिरासत में हिरासत में रखकर ‘प्रताड़ित’ करने से संबंधित थे। शीर्ष अदालत ने कहा कि जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड मूकदर्शक बने रहने और मामला उनके पास आने पर ही आदेश पारित करने के लिए नहीं बनाए गए हैं। अगर उनके संज्ञान में किसी बच्चे को जेल या पुलिस हिरासत में बंद करने की बात आती है, तो वह उस पर कदम उठा सकता है।