केंद्र की मोदी सरकार ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के मुद्दे पर कदम उठाते हुए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की है। इसके साथ ही कमेटी के 8 सदस्यों के नामों की भी घोषणा कर दी है, जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम शामिल नहीं है।
ऐसे में कांग्रेस ने शनिवार को सवाल करते हुए पूछा कि सरकार ने आठ सदस्यीय पैनल में पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को शामिल क्यों नहीं किया है। कमेटी में राज्यसभा विपक्ष नेता को बाहर करना संसद का अपमान है।
साथ ही कांग्रेस ने समिति में खड़गे की जगह राज्यसभा के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद को शामिल करने के केंद्र के फैसले पर भी कड़ी आपत्ति जताई।
दरअसल, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित की गई कमेटी में गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी, राज्यसभा में विपक्ष के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद, पूर्व वित्त आयोग के अध्यक्ष एनके सिंह, पूर्व लोकसभा महासचिव सुभाष कश्यप, वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी शामिल हैं।
कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कहा, “हमारा मानना है कि एक साथ चुनाव पर उच्च स्तरीय समिति और कुछ नहीं बल्कि भारत के संसदीय लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाने का एक व्यवस्थित प्रयास है।”
उन्होंने कहा कि भाजपा ने राज्यसभा के सांसद मल्लिकार्जुन खड़गे के बजाय एक पूर्व नेता प्रतिपक्ष को समिति में नियुक्त किया है। सबसे पहले वे अडानी मेगा घोटाले, बेरोजगारी, महंगाई और अन्य मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए यह नौटंकी कर रहे हैं। इसी के साथ उन्होंने सवाल करते हुए लिखा कि खड़गे जी को बाहर करने के पीछे क्या कारण है? क्या कोई ऐसा नेता है जो इतनी साधारण पृष्ठभूमि से उठकर देश के शीर्ष पद पर पहुंचा है भारत की सबसे पुरानी पार्टी, उच्च सदन में पूरे विपक्ष का नेतृत्व करना, भाजपा-आरएसएस के लिए असुविधा है?
इस बीच समिति में शामिल लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी ने पैनल में काम करने से इनकार कर दिया। उन्होंने पत्र में लिखा कि “मुझे उस समिति में काम करने से इनकार करने में कोई झिझक नहीं है, जिसके संदर्भ की शर्तें इसके निष्कर्षों की गारंटी के लिए तैयार की गई हैं। मुझे डर है कि यह पूरी तरह से धोखा है।”