उच्चतम न्यायालय ने एक अपील को ‘‘कानूनी दुस्साहस’’ करार देते हुए बृहस्पतिवार को अपीलकर्ता पर 1.20 लाख रुपये का जुर्माना लगाया और कहा कि इस मामले के कारण मद्रास उच्च न्यायालय का कीमती न्यायिक समय बर्बाद हुआ, जिसमें ‘‘लाखों लोगों’’ की ‘‘न्याय की गुहार’’ का निर्धारणकिया जा सकता था।

शीर्ष अदालत ऋण एवं उससे उपजे विवाद को लेकर मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ बी गोवर्धन द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ के फैसले को खारिज करते हुए अपीलकर्ता गोवर्धन द्वारा मुकदमे को आगे बढ़ाने और न्यायिक समय बर्बाद करने की आलोचना की।

पीठ के लिए निर्णय लिखने वाले न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने कहा, काश, चीजें उतनी ही सरल होतीं जितनी कि वे दिखती हैं…. हालांकि, इस तरह के कानूनी दुस्साहस के कारण उच्च न्यायालय का कीमती न्यायिक समय बर्बाद हुआ, जिसे लाखों लोगों द्वारा उठाए गए न्याय की गुहार के निर्धारण में बेहतर तरीके से खर्च किया जा सकता था।

इसलिए हम अपीलकर्ता पर 1.20 लाख रुपये का जुर्माना लगाते हैं। निर्णय में कहा गया है कि जुर्माना छह सप्ताह के भीतर उच्च न्यायालय की रजिस्ट्री में जमा किया जाना चाहिए।

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