इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक मामले की सुनवाई करते हुए टिप्पणी की कि कभी-कभी ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीश केवल अपनी प्रतिष्ठा बचाने, हाईकोर्ट के कोप से बचने और करियर की संभावनाओं को देखते हुए निर्दोष व्यक्तियों को भी दोषी ठहरा देते हैं। इसके साथ ही कोर्ट ने हत्या के आरोपी को बरी कर दिया।

जस्टिस सिद्धार्थ और जस्टिस सैयद कमर हसन रिजवी ने केंद्र सरकार से अनुरोध करते हुए टिप्पणी की कि वह निर्दोष व्यक्तियों के खिलाफ गलत तरीके से मुकदमा चलाने पर मुआवजा देने के लिए कानून बनाने के विधि आयोग के सुझाव को अपनाए। गौरतलब है कि विधि आयोग की 277वीं रिपोर्ट (जिसमें गलत अभियोजन से निपटने के लिए कानून बनाने की बात कही गई थी) को सरकार द्वारा स्वीकार किया जाना चाहिए था लेकिन अभी तक यह मामला अटका हुआ है।
ट्रायल कोर्ट ने 2010 में एक व्यक्ति को पत्नी की दहेज हत्या का दोषी ठहराया था। हाईकोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष दहेज हत्या या क्रूरता के आरोप साबित नहीं कर पाया। इसके बावजूद ट्रायल कोर्ट ने आरोपी के खिलाफ हत्या का आरोप इस आधार पर जोड़ दिया कि पत्नी के गर्भ में दो माह का भ्रूण था। कोर्ट ने कहा कि आरोपी ने निर्दोष होते हुए भी 13 साल जेल में बिता दिए।

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