संसद के मौजूदा मानसून सत्र में केंद्र सरकार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक पेश करेगी। हालांकि दिल्ली सरकार व आम आदमी पार्टी के सांसदों ने इसका कड़ा विरोध किया है। इसका विरोध करते हुए ‘आप’ के राज्यसभा सदस्य राघव चड्ढा ने राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ को पत्र लिखा है।
दिल्ली में अधिकारियों की ट्रांसफर पोस्टिंग के अधिकार का मामला सुप्रीम सुप्रीम कोर्ट में था। 11 मई 2023 को सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने माना कि दिल्ली सरकार में सेवारत सिविल सेवक मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद के प्रति जवाबदेह हैं। इस आदेश के कुछ दिन बाद केंद्र ने अध्यादेश लाकर दिल्ली सरकार से नियंत्रण हटा कर इसे एलजी को सौंप दिया। इस अध्यादेश को अब विधेयक के रुप में लोकसभा व राज्यसभा की मंजूरी दिलाई जानी है।
राघव ने लिखा कि अध्यादेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने 20 जुलाई 2023 के अपने आदेश के जरिए इस सवाल को संविधान पीठ को भेजा है कि क्या संसद का एक अधिनियम (और सिर्फ एक अध्यादेश नहीं) अनुच्छेद 239एए की मूल आवश्यकताओं का उल्लंघन कर सकता है। चूंकि संसद द्वारा पारित किसी भी अधिनियम की संवैधानिकता पहले से ही सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ के समक्ष है, इसलिए विधेयक पेश करने से पहले निर्णय के परिणाम की प्रतीक्षा करना उचित होगा।
राघव चड्ढा ने कहा कि यह प्रस्तावित विधेयक असंवैधानिक है क्योंकि यह अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित स्थिति को पूर्ववत करने का प्रयास करता है, जहां से यह स्थिति उत्पन्न होती है। प्रथम दृष्टया यह अस्वीकार्य और असंवैधानिक है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विपरीत दिल्ली सरकार से ‘सेवाओं’ पर नियंत्रण छीनने की मांग कर अध्यादेश ने अपनी कानूनी वैधता खो दी है। यह अनुच्छेद 239एए(7) (ए) संसद को अनुच्छेद 239एए में निहित प्रावधानों को “प्रभावी बनाने” या “पूरक” करने के लिए कानून बनाने का अधिकार देता है।
उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 239एए की योजना के तहत ‘सेवाओं’ पर नियंत्रण दिल्ली सरकार का है। इसलिए अध्यादेश के अनुरूप एक विधेयक अनुच्छेद 239एए को “प्रभाव देने” या “पूरक” करने वाला विधेयक नहीं है, बल्कि अनुच्छेद 239एए को नुकसान पहुंचाने और नष्ट करने वाला विधेयक है, जो अस्वीकार्य है।
राघव ने कहा कि संसद द्वारा अधिनियमित किसी भी कानून को अनुच्छेद 239एए के प्रावधानों का “पूरक” होना चाहिए और उन प्रावधानों के आकस्मिक या परिणामी मामलों की सीमा के भीतर रहना चाहिए। इसलिए अनुच्छेद 239एए के विपरीत प्रावधानों वाले प्रस्तावित विधेयक में वैध विधायी क्षमता का अभाव है और यह असंवैधानिक है।
राघव ने राज्यसभा के सभापति से इस विधेयक को सदन में पेश होने से रोकने, संविधान की रक्षा करने और दिल्ली में लोकतांत्रिक शासन के सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए केंद्र सरकार को इसे वापस लेने का निर्देश देने का आग्रह किया है।