हिडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद से बड़ी आर्थिक चोट पा चुके अडानी ग्रुप को अब यूपी से बड़ा झटका लगा है। दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम ने भी प्रीपेड मीटर का टेंडर निरस्त कर दिया है। सबसे कम दर देने के कारण यह टेंडर अडानी जीएमआर को मिलने वाला था। यूपी में कुल 25000 करोड़ की लागत से 2.5 करोड़ स्मार्ट प्रीपेड मीटर का टेंडर हुआ था। केवल दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम का 9000 करोड़ का टेंडर था।
रूरल इलेक्ट्रिफिकेशन कारपोरेशन लिमिटेड द्वार तय की गई दरें पर टेंडर हुए थे। अब तक मध्यांचल, पूर्वांचल और दक्षिणांचल डिस्कॉम के टेंडर्स निरस्त हो चुके हैं। इससे अब तक करीब 21000 करोड़ के प्रीपेड मीटर के टेंडर निरस्त हो चुके हैं। इसमें मध्यांचल ने 5400 करोड़, पूर्वांचल ने 9000 करोड़ और दक्षिणांचल ने 7000 करोड़ का टेंडर निरस्त किया है।
इसे लेकर उपभोक्ता परिषद लंबे समय से लड़ रहा था। उसकी मांग थी कि चार कलस्टर के टेंडर को सभी बिजली कंपनियां तीन से चार क्लस्टर में निकालें। इससे देश के बिचौलिया रूपी उद्योगपति टेंडर से बाहर और मीटर निर्माता कंपनियां टेंडर में भाग ले पाएं।
मध्यांचल विद्युत वितरण निगम ने 5400 करोड़ के अडाणी के एक टेंडर को पहले ही निरस्त कर दिया था। पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम ने अपने लगभग 9 हजार करोड़ वाले न्यूनतम निविदा दाता मेसर्स जीएमआर के टेंडर को निरस्त करते हुए टेंडर को तीन कलस्टर में निकाला है। पूर्वांचल में केवल एक कलस्टर का 58 लाख का टेंडर निकाला गया था।
अब पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम का एक टेंडर बचा है। इसमें भारत सरकार के अधीन काम करने वाली इंटेली स्मार्ट कंपनी का मामला है। इसमें दरें जो 48 प्रतिशत तक अधिक हैं। इस पर भी जल्द निर्णय होगा।
गौरतलब है कि 25 हजार करोड़ के स्मार्ट प्रीपेड मीटर के टेंडर को पूरे प्रदेश में जहां 4 क्लस्टर में विगत दिनों निकाला गया था और इसमें मैसर्स अदानी मैसर्स जीएमआर व इन टेलीस्मार्ट की दरें न्यूनतम आई थी वह भी ऐस्टीमेटेड कॉस्ट रुपया 6000 प्रति मीटर से कहीं ज्यादा लगभग 9000 से 10000 के बीच यानी कि 65 प्रतिशत तक अधिक था।
इसी को लेकर उपभोक्ता परिषद विद्युत नियामक आयोग में याचिका लगाकर और पावर काररेशन प्रबंधन सहित ऊर्जा मंत्री से गुहार लगा रहा था। कहा था कि सबसे पहले 4 कलस्टर के टेंडर को पूरे प्रदेश में 8 कलस्टर या उससे अधिक कलस्टर मैं निकाला जाए।
इससे टेंडर देश और प्रदेश की मीटर निर्माता कंपनियां भाग ले पाएं। अभी 4 कलस्टर में टेंडर जो निकाले गए हैं। उससे प्रत्येक कलेक्टर की लागत लगभग 5500 करोड़ से 7000 करोड़ के बीच है। इससे कई कंपनियां चाहकर भी टेंडर में नहीं भाग ले पा रही हैं।