राजस्थान के प्रसिद्ध अजमेर दरगाह को भगवान संकटमोचन महावीर मंदिर घोषित करने की मांग की गई है। इससे जुड़ी एक याचिका को लेकर अजमेर की एक अदालत में सुनवाई हुई। हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता की याचिका पर कोर्ट ने कहा कि इस केस को जिला जज की अदालत में लेकर जाएं। दरअसल, याचिका में मांग की गई कि जिस अधिनियम के तहत दरगाह संचालित होती है उसे अमान्य घोषित किया जाए और हिंदुओं को पूजा का अधिकार दिया जाए। इसके साथ ही एएसआई से उस जगह का वैज्ञानिक सर्वेक्षण कराया जाए। हिंदू सेना का दावा है कि वहां एक शिव मंदिर था जिसे मुस्लिम आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया था और फिर दरगाह बनाई गई थी।
हिंदू सेना प्रमुख विष्णु गुप्ता द्वारा दायर किए गए इस मुकदमे की सुनवाई बुधवार को होनी थी, लेकिन अधिकार क्षेत्र के मुद्दों पर इसे 10 अक्टूबर तक के लिए टाल दिया गया। यह गलती से अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट संख्या-3 की अदालत के बजाय मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में दायर किया गया था। याचिकाकर्ता ने बाद में एक आवेदन दायर कर अनुरोध किया कि मुकदमे को उचित अदालत में स्थानांतरित किया जाए। याचिका में दावा किया गया है कि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती मोहम्मद गौरी (12-13वीं सदी के अफगान शासक) के साथ अजमेर आए थे, जिन्होंने पृथ्वीराज चौहान की हत्या के बाद संकट मोचन महादेव मंदिर सहित कई मंदिरों को नष्ट कर दिया था। हिंदू सेना ने किताबों और कथित साक्ष्य का हवाला देते हुए दावा किया कि अजमेर दरगाह के मुख्य प्रवेश द्वार की छत का डिज़ाइन हिंदू संरचना जैसा दिखता है और ऐतिहासिक अभिलेखों से पता चलता है कि इस जगह पर शिव मंदिर था।
इस घटनाक्रम पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए दरगाह के खादिमों के संगठन अंजुमन सैयद जादगान के सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने कहा, यह एक तुच्छ दावा है और ख्वाजा गरीब नवाज की पवित्र दरगाह पर हमला है। इससे हिंदू और मुस्लिम दोनों ही धर्मावलंबियों की भावनाओं को गहरी ठेस पहुंची है। शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को कायरता नहीं समझा जाना चाहिए।