काशी में निर्माणाधीन नए चौड़ीकरण प्रोजेक्ट के कारण छः मस्जिदों को तोड़े जाने की आशंका जताई जा रही है। इनमें से एक प्रसिद्ध मस्जिद, रंगीले शाह शाही मस्जिद भी है, जिसका निर्माण औरंगजेब के समय में किया गया था। अन्य मस्जिदें भी लगभग 100 से 200 साल पुरानी बताई जा रही हैं, और सभी दालमंडी की सड़क पर स्थित हैं। इस चौड़ीकरण प्रोजेक्ट के तहत इन मस्जिदों का एक हिस्सा क्षतिग्रस्त होगा, जिसकी नपाई संबंधित विभाग द्वारा की जा चुकी है। दैनिक भास्कर की टीम ने दालमंडी की ओर रुख किया, जहां उन्हें हकीम मोहम्मद जाफर मार्ग के नाम का एक स्ट्रीट बोर्ड दिखाई दिया। इस क्षेत्र की पुरानी इमारतें अब विभिन्न दुकानों में तब्दील हो गई हैं, और तबाही के संभावित असर पर मस्जिदों के मुतवल्लियों से जानकारी ली गई।
लंगड़े हाफिज मस्जिद, जो कि नई सड़क पर स्थित है, का संचालन ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी करती है। कमेटी के जॉइंट सेक्रेटरी एसएम यासीन ने स्पष्ट किया कि यह मस्जिद उनकी खरीदी हुई जमीन पर स्थित है, और किसी सरकारी संपत्ति पर नहीं है। उन्होंने कहा कि चौड़ीकरण के लिए योजना बनाई जा रही है, लेकिन अभी तक कोई आधिकारिक सूचना नहीं मिली है। इससे उन्हें चिंता है, क्योंकि अचानक कार्रवाई होने की संभावना है जिससे उनके रोजगार पर भी खतरा मंडरा सकता है।
इसी प्रकार, निसारन की मस्जिद की स्थिति भी चिंताजनक है। इसके मुतवाल्ली मोहम्मद आजम ने कहा कि उनकी मस्जिद 1826 में उनके पूर्वजों द्वारा बनवाई गई थी, और इसकी चौड़ाई को लेकर चिंतित हैं। उन्होंने कहा कि दालमंडी की सड़कें पहले चौड़ी की जानी चाहिए, इसके बाद ही मस्जिदों के अपघटन पर विचार किया जाना चाहिए।
रंगीले शाह मस्जिद के मुतवल्ली बेलाल अहमद भी इस परिस्थिति को लेकर चिंतित हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें अब तक कोई आधिकारिक नोटिस नहीं मिला है, और इस मस्जिद का निर्माण रंगीले शाह द्वारा किया गया था जो 400 से 500 साल पुरानी है। उन्होंने मांग की है कि सरकारी अधिकारी इस मंदिर को न तोड़ें और उनकी आस्था को न छेड़ें।
इसी प्रकार अन्य मस्जिदों के मुतवल्लियों ने भी अपने विचार व्यक्त किए हैं। मस्जिद अली रजा के मुतवल्ली सेराज अहमद और साजिद ने भी कहा कि यदि सड़क चौड़ी की गई, तो उनकी मस्जिदों के कई हिस्से नष्ट हो जाएंगे और इससे तीर्थयात्रियों और भिन्न धर्मों के लोगों को कठिनाई होगी। सभी ने अपनी आस्था को बनाए रखने की अपील की है और सरकार से अनुरोध किया है कि इन धार्मिक स्थलों को न तोड़ा जाए।
इन मस्जिदों और लोगों की वर्तमान स्थिति इस बात का प्रमाण है कि धार्मिक स्थलों की सुरक्षा और स्थानीय समुदायों के जीवनयापन के अधिकारों का ध्यान रखा जाना चाहिए। इसलिए यह आवश्यक है कि प्रशासन इस मामले में संवेदनशीलता दिखाए और समुदाय की भलाई के लिए सर्वोत्तम समाधान निकाले।