हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक निर्णय ने 14 वर्षीय लड़की के साथ हुई एक बेहद गंभीर घटना को लेकर न्याय प्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा द्वारा दिए गए इस फैसले में कहा गया कि केवल इस तथ्य के आधार पर कि अभियुक्तों ने पीड़िता की शरीर के कुछ अंगों को छुआ और उसे खींचने का प्रयास किया, इसे बलात्कार के प्रयास का मामला नहीं माना जा सकता। इस टिप्पणी ने सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह को भी प्रतिक्रिया देने पर मजबूर किया, जिन्होंने इस विवादास्पद निर्णय को असंवेदनशीलता का प्रतीक बताया।

यह मामला तीन साल पुराना है, जब पीड़िता की मां ने कासगंज में अपनी बेटी के साथ हुई छेड़छाड़ को लेकर स्थानीय पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। उस दिन पीड़िता अपनी मां के साथ अपनी देवरानी के घर जा रही थी, तभी रास्ते में आरोपी पवन, आकाश और अशोक ने उसकी बाइक पर बैठकर छेड़छाड़ शुरू की। पीड़िता के परिवार के अनुसार, आरोपी ठाकुर बिरादरी से हैं और पीड़िता के परिवार को लगातार धमकियां दे रहे हैं। पीड़िता के चाचा का कहना है कि न्याय के प्रयास के लिए वे काफी संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन अदालतों से उन्हें और निराशा मिली है।

इस मामले में पीड़िता के परिवार की ओर से शिकायत के बाद, कासगंज कोर्ट ने अक्टूबर 2021 में तीनों आरोपियों के खिलाफ विभिन्न धाराओं में अपराध दर्ज किया। लेकिन आगे की प्रक्रिया में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उन्हें बलात्कार के प्रयास का दोषी मानने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के इस निर्णय पर स्वत: संज्ञान लेते हुए मामला उठाया है और राज्य सरकार तथा अन्य पक्षकारों को नोटिस भी जारी किया है।

पीड़ित परिवार अब सुप्रीम कोर्ट में जाकर न्याय की उम्मीद रखता है, लेकिन उन्होंने यह भी बताया कि उन्हें स्थानीय अदालत से न्याय नहीं मिला। पीड़िता की चाची ने कहा कि उनकी बेटी पिछले तीन वर्षों से घर से बाहर नहीं निकल पाई है, जिससे उसकी पढ़ाई प्रभावित हुई है। आरोपी परिवार की ताकतवर स्थिति के कारण उनके ऊपर लगातार खतरे बने हुए हैं। यह स्थिति वास्तव में भारत में कमजोर वर्ग के लिए न्याय की प्रक्रियाओं की गंभीरता को उजागर करती है।

आरोपी पक्ष ने हाईकोर्ट के समक्ष कहा था कि उनके खिलाफ मामला एक पुरानी रंजिश के चलते दर्ज कराया गया है। वे यह साबित करने का प्रयास कर रहे हैं कि यह घटना केवल छेड़छाड़ का मामला था, जबकि पीड़िता के परिवार का कहना है कि उनके साथ घोर अन्याय हुआ है।

इस मामले में शामिल सभी पक्षों की कांटेदार बातें सोशल मीडिया पर सुर्खियाँ बन रही हैं, और यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या भारतीय न्याय प्रणाली वास्तव में कमजोर वर्ग की सुरक्षा कर सकती है या नहीं। पीड़िता का परिवार अब सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर न्याय की आस लगाए बैठा है, लेकिन उनके लिए यह मुश्किल वक्त कब समाप्त होगा, यह कहना मुश्किल है।

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