उत्तर प्रदेश में हत्या के मामलों में पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठते रहे हैं, और हाल ही में कानपुर की एक जिला अदालत ने एक ऐसे मामले में संदेह व्यक्त किया। अदालत ने पुलिस से यह पूछा कि जो तमंचा आरोपियों के पास था, वह तो 2014 में एक अन्य मामले में बरामद किया गया था और पुलिस के मालखाने में रखा गया था। अदालत ने यह निराशा व्यक्त की कि यदि तमंचा मालखाने में था, तो फिर इससे गोली चलाना कैसे संभव था? क्या यह तमंचा खुद से गायब हुआ था? अदालत ने इस संदिग्ध मुठभेड़ के चलते आरोपियों को रिहा करने का निर्णय लिया, जिसे अब फर्जी मुठभेड़ करार दिया जा रहा है।
इसी तरह की एक और घटना नोएडा में घटी, जहाँ बीटेक के एक छात्र को मुठभेड़ के दौरान गोली लग गई। इस मामले में पूर्व SHO सहित 12 पुलिस कर्मियों के खिलाफ जेवर थाने में एफआईआर दर्ज की गई है। छात्र के पिता, तरुण गौतम, ने मुठभेड़ को फर्जी ठहराते हुए अदालत में शिकायत दर्ज की थी। उन्होंने सीसीटीवी फुटेज पेश किए, जिसमें पुलिस उन्हें और उनके बेटे को ले जाते हुए दिखा रही है। इससे साबित होता है कि मुठभेड़ एक सोची-समझी कार्रवाई रही होगी। इस आधार पर अदालत ने पुलिसकर्मियों के खिलाफ FIR दर्ज करने के आदेश दिए।
अपर जिला जज की अदालत के फैसले से एक बार फिर यह साबित हुआ है कि उत्तर प्रदेश में पुलिस की कार्यप्रणाली पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। पिछले सप्ताह में यह दूसरी बार हुआ है जब पुलिस द्वारा की गई मुठभेड़ की सत्यता पर संदेह व्यक्त किया गया है। यूपी में फर्जी एनकाउंटर की घटनाएं एक गंभीर चिंता का विषय बनी हुई हैं, जिसने मानवाधिकारों के उल्लंघन और न्याय व्यवस्था की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं।
इसके साथ ही, अतीक अहमद का मामला भी चर्चा में है। अतीक ने खुद को एक बड़ा माफिया बना लिया और अपने साम्राज्य को 3000 करोड़ रुपये तक पहुंचा दिया। उसका परिवार आर्थिक रूप से कमजोर था, और उसके पिता तांगा चलाते थे। लेकिन अतीक ने राजनीति में कदम रखा और निर्दलीय विधायक बन गए, जिसके बाद उन्होंने पूंजी और शक्ति का काफी विस्तार किया। अतीक की गाथा हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि कैसे इंसान अपनी स्थिति को बदल सकता है, लेकिन साथ ही उसके द्वारा उठाए गए कदमों के परिणाम क्या होते हैं।
उत्तर प्रदेश में फर्जी मुठभेड़ों और आपराधिक गतिविधियों का यह नाजुक मुद्दा जनता के सामने आ रहा है। हर पास होने वाले दिन के साथ, यह आवश्यक हो जाता है कि कोर्ट और प्रशासन कठोर कदम उठाएं ताकि पुलिस की कार्यवाही में पारदर्शिता बनी रहे और आम जनता की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। ऐसे मामलों में निकट भविष्य में सुधार की उम्मीद आवश्यक है।