कौशांबी जिले की एक दिलचस्प और दर्दनाक कहानी का हाल ही में समाप्ति पर पहुँचना दर्शाता है कि न्याय के लिए लंबी लड़ाई कभी-कभी कितनी कठिन हो सकती है। 104 वर्षीय लखन सरोज, जो पिछले 48 वर्षों से एक हत्या के मामले में कानूनी संघर्ष में शामिल रहे हैं, अब बाइज्जत बरी हो गए हैं। 1977 में एक विवाद के चलते उन्हें हत्या का आरोपी बनाया गया था, जब एक झगड़े में प्रभु सरोज नामक व्यक्ति की मृत्यु हो गई थी। उस समय लखन और उनके कुछ साथी इस मामले में जेल गए थे और सेशन कोर्ट द्वारा उन्हें उम्र कैद की सजा दी गई थी। इस मामले की अदालती प्रक्रिया ने उन्हें वर्षों तक उलझाए रखा।
लखन का घर कौशांबी जिले के गौराए गांव में है, जहां विवाद का आरंभ हुआ था। उस समय कौशांबी जिला अस्तित्व में नहीं आया था, और लखन का यह मामला स्थानीय प्रशासन के लिए काफी जटिल बन गया। लखन की चार बेटियां हैं, और वे समय-समय पर अपनी बेटियों के घरों में रहते हैं। जब दैनिक भास्कर की टीम ने उनसे मिलने की कोशिश की, तो उन्हें जानकारी मिली कि वह अपनी चौथी बेटी आशा देवी के घर पर मौजूद हैं। यहां लखन ने बताया कि विवाद कैसे शुरू हुआ, जिसमें झगड़ा हुआ और दुर्घटनावश प्रभु सरोज की मृत्यु हो गई।
लखन ने यह भी उल्लेख किया कि सजा के बाद उन्होंने हाईकोर्ट में अपील की, लेकिन कानूनी प्रक्रिया में उन्हें कई बाधाओं का सामना करना पड़ा। उनकी यह यात्रा बहुत कठिन रही, क्योंकि उन्होंने कई वकील बदले, लेकिन इसके बावजूद उन्हें कोर्ट proceedings के बारे में उतनी जानकारी नहीं थी। कई बार वे तारीख पर उपस्थित नहीं हो पाए, जिससे उनके खिलाफ वारंट जारी हुआ। 2014 में उन्हें जेल भेजा गया, लेकिन परिवार के सदस्यों ने उनकी ओर से मामले का पीछा किया और अंततः उनकी जमानत हुई।
हाईकोर्ट के आदेश के बाद सिर्फ 20 दिन पहले लखन को जेल में रहना पड़ा। अपर जिला जज पूर्णिमा प्रांjal ने इस मामले की जानकारी देते हुए बताया कि लखन को बाइज्जत बरी करने का आदेश जल्द ही जेल प्रशासन को नहीं मिल पाया, जिसके चलते उन्हें अधिक समय तक जेल में रहना पड़ा। यह मामला न केवल लखन के लिए, बल्कि उनके परिवार के लिए भी एक बड़ी चुनौती के रूप में रहा है।
इस घटनाक्रम ने यह साबित कर दिया कि कानूनी लड़ाई कितनी कठिन हो सकती है, विशेषकर उन लोगों के लिए जो न्याय की तलाश कर रहे हैं। लखन की कहानी में सजा, संघर्ष और अंततः विजय का एक पहलू है, जो यह दर्शाता है कि धैर्य और उम्मीद कभी कम नहीं होनी चाहिए। यह खबर न केवल लखन के लिए, बल्कि सभी उस लोगों के लिए प्रेरणा है जो न्याय के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं।