संयुक्त राष्ट्र द्वारा 10वें अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर शुक्रवार को विश्व भर से नागरिक यहां एकत्रित होंगे और सीमाओं से परे योग की एकजुट करने वाली शक्ति का प्रदर्शन करेंगे।
इस वर्ष योग दिवस की थीम ‘महिला सशक्तिकरण के लिए योग’ है। मुख्य कार्यक्रम संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय के उत्तरी लॉन में होगा जहां राजनयिक, संयुक्त राष्ट्र के अधिकारी और कर्मचारी तथा प्राचीन कला के प्रशंसक एक साथ आसन करेंगे।
इस कार्यक्रम में संयुक्त राष्ट्र की उप महासचिव अमीना मोहम्मद के भाग लेने की उम्मीद है। महासभा के अध्यक्ष डेनिस फ्रांसिस एक वीडियो संदेश में सबको संबोधित कर सकते हैं।
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने दिसंबर 2014 में भारत के एक प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया था। इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से अपनाया गया था।
यह तिथि इसलिए चुनी गई क्योंकि ज्यादातर मौकों पर उत्तरी गोलार्ध में ग्रीष्म संक्रांति उसी दिन पड़ती है, हालांकि इस वर्ष और अगले वर्ष यह एक दिन पहले है।
यहां योग उत्सव शुक्रवार शाम 6 बजे (भारतीय समयानुसार शनिवार तड़के 3:30 बजे) होगा जिसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा वेबकास्ट किया जाएगा।
यहां भारतीय मिशन संयुक्त राष्ट्र सचिवालय के साथ इसका सह-प्रायोजन कर रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल संयुक्त राष्ट्र में योग समारोह का नेतृत्व किया था और यह एक ही स्थान पर योग अभ्यास में सबसे अधिक 135 देशों के नागरिकों की भागीदारी के लिए गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में शामिल हुआ था।
संक्रांति के दिन, गुरुवार को, टाइम्स स्क्वायर पर वार्षिक ‘माइंड ओवर मैडनेस’ कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा, जिसमें दिन भर योग सत्र आयोजित किए जाएंगे। यह ‘दुनिया के चौराहे’ के रूप में जाने जाने वाले स्थान की कोलाहल और हलचल के बीच शांति और स्थिरता का एक द्वीप होगा।
भारत का महावाणिज्य दूतावास इस कार्यक्रम के प्रायोजकों में से एक है। कार्यक्रम सुबह 7.30 बजे से शाम 8.30 बजे तक चलेगा। इसमें विभिन्न जातीय समूहों और राष्ट्रीय मूल के प्रशिक्षकों द्वारा संचालित सात योग कक्षाएं शामिल हैं, जो योग की सार्वभौमिकता को दर्शाती हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने सितंबर 2014 में महासभा को अपने पहले संबोधन में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का विचार प्रस्तुत किया था, जिसमें उन्होंने घोषणा की थी, “योग हमारी प्राचीन परंपरा का एक अमूल्य उपहार है”।
अशोक कुमार मुखर्जी, जो उस समय संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि थे, ने अंतर्राष्ट्रीय विभाजनों को पार करते हुए 175 सह-प्रायोजकों को साथ लाये और तीन महीने के भीतर प्रस्ताव पारित कर दिया गया।