दिंसंबर 2022 में के चद्रखेशर राव ने पार्टी के स्थापना के 20 साल बाद अपनी तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) से बदलकर बीआरएस करने का अनुरोध किया था तो शायद ही उसे राजनीतिक संकट की उम्मीद रही होगी। इस बार के विधानसभा चुनव अभियान के दौरान बीआरएस जो कांग्रेस की गारंटियो के सामने पिछड़ती हुई महसूस कर रही है। उसे टीआरएस से पार्टी का नाम बदलकर बीआरएस करने की भी कीमत चुकानी पड़ रही है।
राजनीति के जानकारों का ऐसा ही मनाना है, उनके अनुसार तेलंगाना राष्ट्र समिति का नाम बदलकर भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) करने से न केवल केसीआर की पार्टी को भावनात्मक राजनीतिक अभियान की कीमत चुकानी पड़ी है, बल्कि तेलंगाना राज्य आंदोलन पर कांग्रेस द्वारा दावा करने की भी कीमत चुकानी पड़ रही है।
बता दें बीते सप्ताह कांग्रेस की विजयभेरी अभियान’ में राहुल गांधी ने तेलंगाना राज्य का दर्जा देने का मुद्दा उठाया था जिसमें कांग्रेस को स्पष्ट रूप से 10 साल पहले 2014 में तेलंगाना को अलग राज्य का दर्जा दिए जाने का राजनीतिक निर्णय के स्वामित्व का दावा किया था।
वहीं कांग्रेस के प्रवक्ता बंडारू श्रीकांत ने कहा हमारे सांसदों ने संसद में इसके लिए लड़ाई लड़ी और इस चुनाव में हम बस लोगों को याद दिला रहे हैं कि यह हम ही थे जिन्होंने उनके सपने को साकार किया। कांग्रेस ने ही तेलंगाना को अगल राज्य बनने दिया।
वहीं तेलंगाना चुनाव की तारीखों की घोषणा से पहले कांग्रेस सुप्रीमों सोनिया गांधी ने हैदराबा में सबसे पहले तेलंगाना राज्य युद्ध के आह्वान का नेतृत्व किया और इसे एक अभियान का मुद्दा बनाया। उन्होंने सितंबर में हुई कांग्रेस की सार्वजनिक रैली में तेलंगाना राज्य के निमार्ण के लिए कांग्रेस की प्रतिबद्धता को याद करवाया था।
हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ई वेंकटेश्ववर का इसके बारे में कहना है कि केसीआर ने हालांकि अपनी पार्टी का नाम बदलने का निएर्णय कई कारणों से लिया था लेकिन वो कभी भी कांग्रेस के अचानक उदय की भविष्यवाणी नहीं कर सके और इसलिए ‘तेलंगाना कॉज’ की कमान अपने प्रतिद्वंद्वी को सौंपने के लिए तैयार नहीं हैं।
उन्होंने कहा बीआरएस ने 2014 औार 2018 के तेलंगाना विधानसभा चुनाव में बड़े पैमाने पर चुनाव में तेलंगाना को अलग राज्य बनाने का दावा कर खूब लाभ कमाया ।
राजनीति विशेषज्ञों के अनुसार बीआरएस में केसीआर के परिवार के चार से अधिक सदस्य प्रमुख पदों पर कब्जा जमाए हुए हैं, जिस कारण वंशवादी राजनीति का आरोप सह रही है, कांग्रेस नेता भी लगातार बीआरए पर वंशवादी राजनीतिक करने का आरोप लगा कर आगामी विधानसभा चुनाव में लाभ हासिल करने का प्रयास कर रही है।