5 हजार साल पुराना है ये शिव मंदिर, कौरवों ने की थी शिवलिंग की आराधना

जालौन, 26 फ़रवरी (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के जालौन में 5000 साल पुराना शिव मंदिर मौजूद है और ऐसी मान्यता है कि कौरव व पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य ने आकर इस शिवलिंग की पूजा की थी। इसके बाद उन्हें अश्वत्थामा नाम के पुत्र की प्राप्ति हुई थी। इतिहासकारों की मानें तो यह मंदिर महाभारत कालीन बताया जाता है। मंदिर की प्राचीनता श्रद्धालुओं को अपनी और आकर्षित करती हैं और सावन के महीनों में यहां भक्तों का जमावड़ा लगता है।

दरअसल, जालौन के कालपी नगर को बुंदेलखंड का प्रवेश द्वार कहा जाता है। यहां का इतिहास महाभारत कालीन से लेकर मराठा काल से जुड़ा हुआ है। इसलिए यहां के पुजारी और स्थानीय लोग बताते हैं कि इस पातालेश्वर मंदिर में पांडव अज्ञातवास के दौरान यहां पर आए थे और उन्होंने शिवलिंग की पूजा की थी। मंदिर में मौजूद शिवलिंग लगभग 8 फीट नीचे गर्भ ग्रह में विराजमान है। शिवलिंग की उत्पत्ति पाताल लोक से हुई है इसलिए इसका नाम पातालेश्वर मंदिर पड़ा।

काल सर्प योग से लोगों को मिलती है मुक्ति

40 वर्षों से मंदिर की सेवा कर रहे पुजारी शिव कांत पाठक ने बताया कि यह मंदिर महाभारत काल के समय से मौजूद है। वनवास के दौरान पांडवों ने यहां काफी समय बिताया था और मंदिर में मौजूद शिवलिंग की आराधना भी की थी। जिसके बाद उन्हें पुत्र रत्न के रूप में अश्वत्थामा की प्राप्ति हुई थी। भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम का भी आना हुआ था पातालेश्वर मंदिर में नाग देवता का मंदिर भी है। श्रद्धालु शिव भगवान की आराधना कर नाग देवता के मंदिर में जरूर जाते हैं। नाग देवता की पूजा करने से कालसर्प दोष से मुक्ति मिल जाती है।

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