छत्तीसगढ़ के चर्चित 2161 करोड़ रुपए के शराब घोटाले के मामले में जेल में बंद आरोपी अरविंद सिंह की जमानत याचिका पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की कार्यप्रणाली को लेकर गंभीर टिप्पणियां की। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि ईडी की शिकायतों में एक निश्चित पैटर्न देखने को मिलता है, जिसमें आरोप तो लगाए जाते हैं, लेकिन उनके समर्थन में ठोस सबूतों की कमी होती है। अदालत ने कहा कि वह कई मामलों में ईडी की शिकायतों की समीक्षा कर चुकी है, जिनमें सिर्फ आरोप होते हैं, किन्तु किसी ठोस साक्ष्य का उल्लेख नहीं होता है।
कोर्ट ने इस मामले में ईडी से सवाल किया कि वह किस ठोस आधार पर यह दावा कर रही है कि अरविंद सिंह ने 40 करोड़ रुपए की कमाई की है। ईडी की ओर से पैरवी कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी इस विषय पर कोई ठोस सबूत पेश नहीं कर सके। मामले की अगली सुनवाई 9 मई को निर्धारित की गई है। जस्टिस ओक ने ईडी से साफ तौर पर यह पूछा कि अगर इतने बड़े आरोप की बात सामने आ रही है, तो उन्हें यह भी बताना होगा कि आरोपी किस कंपनी से जुड़ा हुआ है, क्या वह उसका डायरेक्टर है, या क्या वह बहुसंख्यक शेयरधारक है। ईडी की शिकायतों में ऐसी जानकारी का अभाव दिख रहा है।
इस पर ईडी ने तर्क दिया कि आरोपी अरविंद सिंह और विकास अग्रवाल उन कंपनियों का संचालन कर रहे थे जिनसे संबंधित घोटाले हुए हैं। जिस पर जस्टिस ओक ने यह पूछ लिया कि 40 करोड़ की कमाई का आरोपी से क्या सीधा संबंध है? इसके जवाब में ईडी ने कहा कि यह रकम अरविंद और विकास अग्रवाल ने मिलकर कमाई। इसके प्रति जस्टिस ओक ने पूछा कि क्या विकास अग्रवाल को आरोपी बनाया गया है, जिस पर ईडी ने बताया कि लुकआउट सर्कुलर जारी किया गया है लेकिन अभी तक उन्हें आरोपी नहीं बनाया गया है।
अरविंद सिंह के वकील ने यह भी तर्क पेश किया कि उनके मुवक्किल को 10 महीने से अधिक समय से ईडी की हिरासत में रखा गया है और इस दौरान ईडी ने 25,000 पन्नों की चार्जशीट दाखिल की है और 150 से अधिक गवाहों के बयान दर्ज किए हैं, इसके बावजूद जांच पूरी नहीं हो पाई है। ईडी ने कहा कि यह मामला 2000 करोड़ से अधिक के घोटाले से संबंधित है और यदि दस्तावेजों की मात्रा के आधार पर जमानत दी गई, तो पहले दिन सभी आरोपी बाहर आ जाएंगे।
जस्टिस ओका ने इस पर स्पष्ट किया कि जमानत देने के लिए हिरासत में रहने की अवधि कोई कानूनी मानक नहीं है, और कानून में इस प्रकार का कोई प्रावधान नहीं है। उल्लेखनीय है कि इस मामले में पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा, रिटायर्ड आईएएस अनिल टुटेजा, आईटीएस अरुणपति त्रिपाठी, कारोबारी अनवर ढेबर, त्रिलोक सिंह ढिल्लन, नीतेश पुरोहित और नोएडा के कारोबारी विधु गुप्ता सहित कई अन्य को ईडी ने गिरफ्तार किया है। आरोपितों के खिलाफ ईडी के अलावा आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) भी जांच कर रही है। ऐसा दावा किया गया है कि अरुणपति त्रिपाठी ने इस घोटाले के लिए एक सिंडीकेट का गठन किया, जिसमें कवासी को हर माह 2 करोड़ रुपए कमीशन दिया जाता था।