Supreme Court ने एक बड़े फैसले में कहा है कि ट्रेन में सामान चोरी पर मुआवजा नहीं मिलेगा। कोर्ट ने कहा, लगेज की सुरक्षा रेलवे सर्विस का हिस्सा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया, ट्रेन में चोरी को रेलवे की सेवा में कमी नहीं कहा जा सकता।
देश की सबसे बड़ी अदालत के एक अहम फैसले में कहा कि ट्रेन यात्रा के दौरान किसी यात्री से चुराए गए पैसे को रेलवे की ओर से सेवा की कमी नहीं कहा जा सकता है। अदालत के फैसले के बाद जिला, राज्य और राष्ट्रीय उपभोक्ता फोरम का आदेश निरस्त हो गया है।
निचले फोरम पर निष्कर्षों में रेलवे को 1 लाख रुपये ब्याज के साथ भुगतान करने को कहा गया। मामला अप्रैल, 2005 का है। यात्रा के दौरान समान राशि की चोरी के बाद एक कपड़ा व्यापारी ने मुआवजे की मांग की थी।
भारतीय रेलवे ने उपभोक्ता मंचों के सर्वसम्मत फैसलों को चुनौती दी थी। रेलवे की अपील को स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस विक्रम नाथ और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की अवकाश पीठ ने अहम फैसला सुनाया।
केंद्र सरकार के वकील राजन के चौरसिया की दलीलों से सहमत सुप्रीम कोर्ट ने कहा, अदालत यह समझने में विफल हैं कि चोरी को रेलवे की तरफ से सेवा में कमी कैसे माना जा सकता है। खास तौर पर जब यात्री अपने सामान को सुरक्षित रखने में सक्षम नहीं है।
इस मामले में टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, कपड़ा व्यापारी सुरेंद्र भोला 27 अप्रैल 2005 को काशी विश्वनाथ एक्सप्रेस में आरक्षित बर्थ पर ट्रैवल कर रहे थे। कमर में बंधी कपड़े की पेटी में एक लाख रुपये के साथ वे कपड़े खरीदने के लिए दिल्ली जा रहे थे।
28 अप्रैल को सुबह 3.30 बजे उठने पर उसने देखा कि कपड़े की पेटी और पतलून के दाहिने हिस्से का हिस्सा कटा हुआ है। तलाश के बाद उसे एहसास हुआ कि एक लाख रुपये चोरी हो गये हैं।
28 अप्रैल को दिल्ली स्टेशन पर उतरते ही उन्होंने राजकीय रेलवे पुलिस (जीआरपी) में प्राथमिकी दर्ज कराई। कुछ दिनों बाद, उन्होंने जिला उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम, शाहजहाँपुर में एक शिकायत दर्ज कराई।
कंज्यूमर फोरम में पीड़ित यात्री ने रेलवे को 18% ब्याज के साथ अपने चोरी हुए पैसे को वापस करने और अपने क्षतिग्रस्त पतलून के लिए 400 रुपये की मांग की। उसने दावा किया कि चोरी रेलवे की लापरवाही के कारण हुई है।
रेलवे ने कहा कि वह केवल अपने साथ बुक किए गए पार्सल वाले सामान के लिए जिम्मेदार है न कि यात्रियों के सामान के लिए। रेलवे ने जिला फोरम को बताया था कि हर स्टेशन पर यात्रियों को सतर्क रहने और अपने सामान की सुरक्षा के प्रति जिम्मेदार होने की चेतावनी संबंधी नोटिस लगाए गए हैं।
यात्री की दलीलों के खिलाफ रेलवे ने कहा था कि यात्रियों और उनके सामान की सुरक्षा राज्य सरकारों के तहत काम करने वाली जीआरपी के अधिकार क्षेत्र में नहीं आती है। हालांकि, रेलवे की अपील खारिज हो गई।
2006 में जिला मंच ने रेल यात्री की शिकायत को आंशिक रूप से स्वीकार कर रेलवे को 1 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया। क्षतिग्रस्त पतलून के लिए ब्याज और मुआवजे के दावों को खारिज कर दिया।
अगले चरण में उत्तर प्रदेश राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने 31 दिसंबर 2014 को रेलवे की अपील खारिज कर दी। इसके बाद राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने भी 12 जून 2015 को खारिज कर दिया था।