राजनीतिक इच्छाशक्ति, खुफिया जानकारी और सेना की मारक क्षमता ने बनाया ऑपरेशन सिंदूर को सफलः गृहमंत्री
नई दिल्ली, 23 मई (हि.स.)। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता के तीन प्रमुख कारण बताए। उन्होंने कहा कि यह ऑपरेशन प्रधानमंत्री की दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति, खुफिया एजेंसियों से मिली सटीक जानकारी और भारतीय सेना की जबरदस्त मारक क्षमता के तालमेल से संभव हुआ। इन तीनों के एकसाथ आने से देश ने दशकों से चल रहे पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद का निर्णायक उत्तर दिया।
अमित शाह ने आज सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के अलंकरण समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया। नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित कार्यक्रम में महानिदेशक बीएसएफ दलजीत सिंह चौधरी और अन्य वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहे। शाह ने बीएसएफ के अलंकरण समारोह 2025 और ‘रुस्तमजी स्मृति व्याख्यान’ को संबोधित करते हुए अर्धसैनिक बल के साहस और समर्पण को सलाम किया। उन्होंने कहा कि बीएसएफ और सेना आज विश्व के सामने अद्वितीय वीरता का उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। इसी साहस का प्रतीक है ऑपरेशन सिंदूर।
गृहमंत्री ने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान पूरी तरह बेनकाब हो गया है। आतंकी ठिकानों पर हमले पर पाकिस्तान की सेना ने जवाबी कार्रवाई की। आतंकवादियों के जनाजों में पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी शामिल हुए। इनसे स्पष्ट हो गया कि भारत में होने वाले आतंकी हमले पाकिस्तान प्रायोजित हैं। भारतीय सेना ने न केवल आतंकियों के नौ ठिकाने नष्ट किए बल्कि उनके दो मुख्यालय भी ध्वस्त किए।
गृहमंत्री ने सभी सुरक्षा बलों को नमन करते हुए कार्यक्रम में कहा, “भारत अब जवाब देता है। हम केवल आतंकी ठिकानों पर हमला करते हैं, पाकिस्तानी सैन्य ठिकानों को नहीं छूते। यह भारत की परिपक्व नीति और स्पष्ट इरादे का प्रमाण है।” गृहमंत्री ने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में बीएसएफ की भूमिका को याद करते हुए कहा कि बांग्लादेश को कभी नहीं भूलना चाहिए कि उनके स्वतंत्रता संघर्ष में बीएसएफ के जवानों ने बहादुरी से लड़ाई लड़ी। उस युद्ध को भारत पर थोपा गया था लेकिन बीएसएफ ने अपनी वीरता से न केवल देश की सीमाएं सुरक्षित कीं, बल्कि एक नए राष्ट्र के गठन में भी अहम भूमिका निभाई।
अमित शाह ने बीएसएफ के गठन का उल्लेख करते हुए बताया कि 1965 के युद्ध के बाद जब सीमाओं की पहचान की गई, तो शांतिकाल में भी 100 प्रतिशत सुरक्षा देने वाली एक फोर्स की आवश्यकता महसूस हुई। इसी से बीएसएफ का जन्म हुआ। इसके पहले महानिदेशक के रूप में के.एफ. रुस्तमजी नियुक्त हुए। वे भारत में पहले सीमाओं के संरक्षक बने। बीएसएफ को बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसी सबसे कठिन सीमाओं की जिम्मेदारी दी गई और उसने उसे बखूबी निभाया।
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