यूपी के संभल जिले में यह साल नेजा मेला आयोजित नहीं होगा, जो सैयद सालार मसूद गाजी की याद में हर साल मनाया जाता था। यह मेला भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में महमूद गजनवी का भांजा बताया जाता है, जिसने धार्मिक स्थलों को लूटने का कृत्य किया। संभल के अपर पुलिस अधीक्षक (ASP) श्रीश्चंद ने स्पष्ट रूप से यह कहा है कि ऐसे ऐतिहासिक व्यक्तित्व की याद में मेला नहीं लगाए जाने चाहिए, जिसने भारत के दो लाख मंदिरों को तोड़ा और लूटा। वहीं, नेजा मेले का आयोजन करने वाली कमेटी ने इस पर पुनर्विचार करने की मांग की है, यह कहते हुए कि यह परंपरा वर्षो से चली आ रही है और इसे रोकना अनुचित है।
नेजा मेले का आयोजन हर साल होली के बाद पहले मंगलवार से शुरू होता है। इस बार इसे 25, 26 और 27 मार्च को आयोजित किया जाना था। इसके पहले चरण में 18 मार्च को मेला शुरू करने का प्रतीक ढाल लगाने के लिए पुलिस स्टेशन के बाहर एक गड्ढे में बांस गाड़ा जाने वाला था, जिसे ASP श्रीश्चंद ने सीमेंट से भरवा दिया और इसे कुरीति का अंत बताया। मेला कमेटी ने 17 मार्च को ASP से अनुमति मांगी थी, लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगी जब ASP ने उन्हें सैयद सालार मसूद गाजी के ऐतिहासिक कृत्यों की याद दिलाते हुए मेला न लगाने की चेतावनी दी।
इस विषय पर ASP ने कहा कि इतिहास में सैयद सालार मसूद गाजी ने बहुत सी हत्याएं कीं और धार्मिक स्थलों को नुकसान पहुँचाया। उनकी याद में मेला मनाना अस्वीकृति का विषय है, और इस पर विशेष नजर रखी जा रही है, क्योंकि कई लोगों ने इस पर आपत्ति भी जताई थी। विवाद तब और बढ़ा जब स्थानीय व्यापारियों और मुस्लिम समुदाय के लोगों ने कहा कि यह मेला सद्भावना का प्रतीक रहा है और इसमें कोई कुरीति नहीं है। उन्होंने कहा कि इस बार मेला नहीं होने से उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची है।
नेजा मेले के आयोजक शाहिद हुसैन ने कहा है कि वे इस निर्णय के खिलाफ उच्च अधिकारियों से मिलकर अपना पक्ष रखेंगे। वे आश्वस्त हैं कि यदि मामला सही तरीके से रखा जाएगा, तो उन्हें अपनी परंपरा को आगे बढ़ाने की अनुमति मिल जाएगी। पूर्व सभासद तस्दीक इलाही भी इस विषय पर कहते हैं कि इस मेले के ऐतिहासिक महत्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। उन्होंने यह सुझाव दिया कि यदि प्रशासन ने आधिकारिक रूप से कुछ कहा है, तो उन्हें सही तरीके से इस पर चर्चा करनी चाहिए।
सैयद सालार मसूद गाजी का ऐतिहासिक महत्व अब भी लोगों के बीच चर्चा का विषय है। उन्होंने 11वीं शताब्दी में अपने मामी महमूद गजनवी के साथ भारत में विजय प्राप्त करने का प्रयास किया। माना जाता है कि वे शहीद हुए और आज भी उनकी मजार बहराइच में मौजूद है, जहां लोग श्रद्धा से मत्था टेकने आते हैं। हालाँकि, इस ज्ञान की पृष्ठभूमि में, राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे को लेकर अपनी-अपनी टिप्पणियाँ की हैं। मुख्यमंत्री ने मसूद गाजी की भूमिका को विवादास्पद बताया है।
इस विवाद ने संभल के सामाजिक ताने बाने में नया मोड़ ला दिया है। सभी पक्षों के विचार सुनने के बाद यह स्पष्ट होता है कि मेला न लगने से सामाजिक असंतोष बढ़ सकता है। ऐसे में प्रशासन को चाहिए कि वे यह सुनिश्चित करें कि सभी धार्मिक मान्यताओं का सम्मान किया जाए और किसी भी परंपरा को नकारा न जाए। इस मामले का समाधान स्थानीय स्तर पर आपसी संवाद और सहमति के माध्यम से निकाला जा सकता है।