संभल की जामा मस्जिद को लेकर चल रहा विवाद देश की धार्मिक और ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण के मुद्दे पर एक नया मोड़ ले चुका है। हाल ही में, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने इस मस्जिद के लिए नया साइन बोर्ड भेजा, जिसमें नाम ‘जुमा मस्जिद’ लिखा गया है। AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी का कहना है कि इस नए बिल के पास होने के बाद यह मस्जिद वक्फ की संपत्ति नहीं रहेगी क्योंकि इसे ASI ने संरक्षित स्मारक के तौर पर मान्यता दी है। ओवैसी ने स्पष्ट किया कि अब यह मस्जिद वक्फ से संबंधित नहीं रहेगी और इसका नया नाम जुमा मस्जिद रखा गया है।

जमीन के नाम को लेकर यह विवाद तब बढ़ा, जब जामा मस्जिद कमेटी ने नया बोर्ड लगाए जाने का विरोध किया। मस्जिद कमेटी के वकील शकील अहमद वारसी ने कहा कि सही नाम ‘शाही जामा मस्जिद’ है। उनके अनुसार, ASI ने पुराने नाम को गलत बताते हुए जुमा मस्जिद नाम से नया बोर्ड भेजा, लेकिन मस्जिद कमेटी ने इसे चुनौती दी है। वारसी के अनुसार, 1927 के रिकॉर्ड में भी इस मस्जिद का नाम ‘शाही जामा मस्जिद’ के रूप में दर्ज है।

हालांकि, ASI के वकील विष्णु शंकर शर्मा ने कमेटी के दावे का खंडन करते हुए कहा कि भारत सरकार के नोटिफिकेशन में 1980 में इस मस्जिद का नाम ‘जुमा मस्जिद’ के रूप में दर्ज किया गया है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि स्थानीय लोग इसे आमतौर पर ‘शाही जामा मस्जिद’ के रूप में जानते हैं, लेकिन आधिकारिक रिकॉर्ड में जुमा मस्जिद का नाम ही है। इस विवाद में एक नया मोड़ तब आया जब हाईकोर्ट ने इसे ‘विवादित ढांचा’ करार दिया।

इस विवाद ने केवल धार्मिक पहलू को ही नहीं, बल्कि कानूनी जटिलताओं को भी जन्म दिया है। मस्जिद के नाम को लेकर चल रही इस बहस में हाईकोर्ट ने भी कई बार दखल दिया है, जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि विभिन्न पक्षों के बीच मतभेद हैं। साथ ही, ASI से जुड़े दस्तावेज भी इस विवाद का केंद्र बन गए हैं। मस्जिद के साइन बोर्ड की अनुपस्थिति ने मामले को और जटिल बना दिया है, क्योंकि स्थानीय अधिकारी और पुलिस इस बारे में कुछ बताने को तैयार नहीं हैं।

इस सब के बीच, दैनिक भास्कर ने सभी पक्षों से बातचीत की और मस्जिद के संबंध में सभी दस्तावेजों की समीक्षा की। उनके निष्कर्ष के अनुसार, मस्जिद के नाम को लेकर चल रहे विवाद ने न केवल संभल के लोगों को प्रभावित किया है, बल्कि यह कानूनी और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह स्थिति इस बात का भी संकेत है कि धार्मिक स्थल की पहचान को लेकर हमारे समाज में कितनी जटिलताएँ और संवेदनाएं हैं।

सलाहकार और स्थानीय लोगों की प्रतिक्रियाएं इस बात का संकेत हैं कि मस्जिद के नाम को लेकर पीछे किस तरह की सोच और प्रतिबद्धता है। यह मामला केवल एक पवित्र स्थल का नाम नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक पहचान और ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण से भी जुड़ा हुआ है। देखते हैं कि यह परिपाटी आगे कैसे विकसित होती है और इस विवाद का समाधान कैसे निकलता है।

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Verified by MonsterInsights