उपेंद्र कुशवाह ने जनसंख्या के आधार पर परिसीमन कराने की मांग की

नई दिल्ली, 6 मई (हि.स.)। राष्ट्रीय लोकमोर्चा (आरएलएम) के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाह ने मंगलवार को केंद्र सरकार से आगामी जनगणना के आधार पर लोकसभा सीटों का परिसीमन कराने की मांग की है। उन्होंने कहा कि पांच दशकों से परिसीमन नहीं होने का सबसे अधिक नुकसान हिंदी पट्टी के बिहार और उत्तर प्रदेश आदि राज्यों को हो रहा है।

आरएलएम अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने परिसीमन के मुद्दे पर नई दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए जनगणना और परिसीमन में देरी पर रोश प्रगट किया। उन्होंने दावा किया कि परिसीमन न होने के कारण समान प्रतिनिधित्व का सिद्धांत कमजोर हो रहा है।

कुशवाह ने पृष्ठभूमि की जानकारी देते हुए कहा कि आजादी के बाद संविधान के अनुसार लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन की प्रक्रिया की शुरुआत हुई। इसमें 10 वर्ष के बाद जनगणना और आबादी के हिसाब से क्षेत्रों के निर्धारण का प्रावधान है। इस प्रावधान के हिसाब से वर्ष 1951, 1961 और 1971 में परिसीमन हुआ। हालांकि, 1971 के बाद आपातकाल के दौरान इस पर रोक लगा दी गई। उन्होंने कहा कि पहले इसे 25 साल के लिए फ्रीज किया गया फिर 2001 में इसे अगले 25 साल के लिए बढ़ा दिया गया। इसलिए अब 2026 में परिसीमन होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि परिसीमन पर रोक बरकरार रखने के लिए कुछ लोग विशेषरूप से दक्षिण के नेता केंद्र सरकार पर दबाव बना रहे हैं। बीते संसद सत्र में सदन के भीतर और बाहर ये लोग परिसीमन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते रहे। उन्होंने कहा कि पिछले 50 वर्षों से परिसीमन नहीं होने का सबसे ज्यादा नुकसान हिंदी पट्टी के राज्यों बिहार और उत्तर प्रदेश आदि को हो रहा है।

आरएलएम अध्यक्ष ने कहा कि वर्तमान व्यवस्था में दक्षिण के राज्य औसतन 21 लाख की आबादी पर एक सांसद को चुनकर भेज रहे हैं, जबकि बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे हिंदी भाषी राज्यों में यह आंकड़ा 31 लाख है। उन्होंने इसे संविधान के एक व्यक्ति, एक वोट, एक मूल्य के सिद्धांत के खिलाफ बताया । उन्होंने कहा कि दक्षिणी राज्यों के नेताओं का यह तर्क कि परिसीमन से उत्तर भारत को जनसंख्या वृद्धि का लाभ मिलेगा पूरी तरह गलत और भ्रामक है।

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