प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य सरकारों से ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य को हासिल करने के लिए दुनिया भर की कंपनियों से निवेश आकर्षित करने का आह्वान किया।
भारतीय उद्योग जगत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस पहल की सराहना की है। स्वतंत्रता दिवस के अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने कहा कि निवेश के लिए अगर नीतियों में बदलाव की जरूरत हो, तो राज्यों को वैश्विक जरूरतों के हिसाब से बदलाव करना चाहिए।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “अगर जमीन की जरूरत है, तो राज्यों को जमीन बैंक बनाना चाहिए। सुशासन के लिए काम करने में राज्य जितना ज्यादा सक्रिय होंगे और इस दिशा में प्रयास करेंगे, उतनी ही संभावना है कि ये निवेशक लंबे समय तक बने रहेंगे।
यह काम अकेले केंद्र सरकार नहीं कर सकती है, इसमें राज्य सरकारों की अहम भूमिका है क्योंकि प्रोजेक्ट राज्यों में ही लागू किए जाएंगे।”
प्रधानमंत्री ने राज्यों से आग्रह किया कि विश्व तेजी से भारत की ओर आकर्षित हो रहा है और भारत में निवेश करने के लिए प्रतिबद्ध है, इसलिए “यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम पुरानी आदतों को छोड़कर स्पष्ट नीतियों के साथ आगे बढ़ें।”
प्रधानमंत्री मोदी ने जोर देकर कहा, “निवेशकों को आकर्षित करने के लिए प्रत्येक राज्य को स्वस्थ प्रतिस्पर्धा में शामिल होना चाहिए। यह प्रतिस्पर्धा उनके राज्यों में निवेश लाएगी, स्थानीय युवाओं को अवसर प्रदान करेगी और रोजगार पैदा करेगी।”
एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एसोचैम) के महासचिव दीपक सूद के अनुसार, निवेश आकर्षित करने के लिए स्पष्ट नीतियां बनाने में राज्यों को शामिल करने की पहल “निवेश-आधारित विकास को बढ़ाने के लिए एक दोहरा दृष्टिकोण” होगी।
भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की) के अध्यक्ष अनीश शाह ने कहा कि भारत को एक उच्च गुणवत्ता वाले राष्ट्र के रूप में देखा जाना चाहिए और “हमारे उत्पादों को डिजाइन, स्थिरता और सेवा गुणवत्ता के मामले में दुनिया में कहीं भी देखे जाने वाले सर्वोत्तम उत्पादों के बराबर होना चाहिए।”
अनीश शाह ने आगे कहा कि अब समय आ गया है कि भारतीय कंपनियां विश्व को अपने उत्पादों के लिए एक बाजार के रूप में देखें और संपूर्ण मूल्य श्रृंखला में अनुसंधान एवं विकास, नवाचार तथा डिजाइन पर ध्यान केंद्रित करके “हम भारत से वैश्विक चैंपियन तैयार करने में सक्षम होंगे।”
सीआईआई के अध्यक्ष संजीव पुरी ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का यह सुझाव कि प्रति वर्ष किए जाने वाले दो सुधार भी देश में बदलाव के लिए पर्याप्त हैं, बिल्कुल सही है।