असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने कहा है कि राज्य सरकार की मौजूदा नीति विदेशियों को वापस भेजने की है, भले ही उनका नाम राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) में हो। सरमा ने कहा कि असम में जिस तरह से एनआरसी में नाम शामिल किए गए हैं, उससे इसे लेकर संदेह की काफी गुंजाइश है और यह किसी व्यक्ति की नागरिकता तय करने के लिए एकमात्र दस्तावेज नहीं हो सकता। मुख्यमंत्री ने दरांग में एक कार्यक्रम से इतर कहा, ‘‘कई लोगों ने अनुचित तरीकों का इस्तेमाल करके एनआरसी में अपना नाम दर्ज कराया है, इसलिए हमने यह नीति अपनाई है कि अगर प्राधिकारी पूरी तरह से आश्वस्त हैं कि संबंधित व्यक्ति विदेशी है, तो उसे वापस भेज दिया जाएगा।’’ सरमा ने कहा, ‘‘मैं व्यक्तिगत रूप से इस बात से सहमत नहीं हूं कि एनआरसी में नाम होना ही यह निर्धारित करने के लिए पर्याप्त है कि कोई व्यक्ति अवैध प्रवासी नहीं है।’’

मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि सामाजिक कार्यकर्ता एवं लेखक हर्ष मंदर दो साल तक असम में रहे थे और उन्होंने राज्य के कुछ युवाओं को शिक्षा के लिए अमेरिका और इंग्लैंड भेजा था तथा उन्हें एनआरसी में हेरफेर करने के लिए प्रोत्साहित किया था। सरमा ने कहा, ‘‘हमें उस समय इन साजिशों के बारे में पता नहीं था। मुख्यमंत्री बनने के बाद मुझे इन मामलों का पता चला।’’ उन्होंने कहा कि मंगलवार रात को 19 लोगों को वापस भेजा गया और बुधवार रात नौ अन्य लोगों को वापस भेजा गया।

हम आपको बता दें कि पूरे असम में पिछले महीने से कई लोगों की नागरिकता पर संदेह होने के कारण उन्हें पकड़ा गया है और उनमें से कई लोगों को वापस बांग्लादेश भेज दिया गया है। इनमें से कुछ लोग पड़ोसी देश द्वारा उन्हें अपना नागरिक मानने से इंकार करने के बाद वापस लौट आए हैं।

दूसरी ओर, कांग्रेस सांसद रकीबुल हुसैन ने आरोप लगाया है कि असम के मुख्यमंत्री जनता में भय पैदा करने के लिए जानबूझकर विदेशी अधिनियम और भारतीय नागरिकता अधिनियम को एक साथ जोड़ रहे हैं। उन्होंने एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए वैध भारतीय नागरिकों को बांग्लादेश वापस भेजने की असम सरकार की कथित कार्रवाई की निंदा की और इसे असंवैधानिक करार दिया। रकीबुल हुसैन ने कहा कि असम समझौते के प्रावधानों के अनुसार विदेशियों का पता लगाया जाना चाहिए और उन्हें निर्वासित किया जाना चाहिए तथा राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) इस मुद्दे को हल करने की दिशा में एक प्रक्रिया है। हम आपको याद दिला दें कि असम समझौता राज्य में छह साल तक जारी रहे विदेशी विरोधी हिंसक आंदोलन के बाद 1985 में किया गया था। उन्होंने कहा, ‘‘कांग्रेस सरकार ने असम समझौते के आधार पर एनआरसी लागू करने का फैसला किया था। नागरिकता अधिनियम इसके लिए कानूनी ढांचा था। हालांकि, मुख्यमंत्री सरमा अब वास्तविक मुद्दों से ध्यान भटका रहे हैं।”

हम आपको बता दें कि 22 अप्रैल को पहलगाम हमले के बाद देशभर में राष्ट्रव्यापी सत्यापन अभियान शुरू हुआ और 7 मई को शुरू हुए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद इसमें तेजी आई। इसके चलते अब तक हजारों बांग्लादेशियों को उनके देश वापस भेज दिया गया है। बड़ी संख्या में बांग्लादेशी खुद भी वापस जा रहे हैं। हम आपको बता दें कि इन अवैध प्रवासियों को वायुसेना के विमानों द्वारा विभिन्न स्थानों से सीमा के पास लाकर BSF को सौंप दिया जाता है। वहां उन्हें अस्थायी शिविरों में रखा जाता है। भोजन के अलावा जरूरत पड़ने पर उन्हें कुछ बांग्लादेशी मुद्रा दी जाती है और फिर कुछ घंटों बाद उन्हें उनके देश में “वापस धकेल” दिया जाता है।

हम आपको यह भी याद दिला दें कि इस साल फरवरी में ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या प्रवासियों को देश में प्रवेश दिलाने, दस्तावेज़ बनवाने और उन्हें टिकाए रखने में मदद करने वाले किसी भी नेटवर्क के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। उन्होंने कहा था, “अवैध घुसपैठियों का मुद्दा राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है और इसे सख्ती से निपटाया जाना चाहिए। इन्हें चिन्हित कर निर्वासित किया जाना चाहिए।”

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