गंगा सप्तमी: ललिताघाट पर मां गंगा की संगीतमय आराधना, बाबा विश्वनाथ का हुआ जलाभिषेक

शिवजटाओं से धरती पर अवतरित गंगा का उत्सव श्रद्धा और भक्ति से मना

वाराणसी,04 मई (हि.स.)। गंगा सप्तमी के पावन अवसर पर रविवार को ललिताघाट पर मां गंगा की भव्य एवं संगीतमय आराधना की गई। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास की पहल पर आयोजित इस अनुष्ठान में वैदिक मंत्रों की गूंज के साथ मां गंगा का विधिवत अभिषेकम संपन्न हुआ। इसके पश्चात श्री काशी विशेश्वर का जलाभिषेक गंगा जल से किया गया। इस दौरान गंगा तट से बाबा का दरबार वैदिक मंत्रोच्चार से गुंजायमान रहा।

श्री काशी विश्वनाथ धाम में स्थित मां गंगा के मंदिर में विधि विधान से आराधना के बाद आरती संपन्न की गई। सायंकाल मंदिर चौक स्थित शिवार्चनम मंच पर मां गंगा एवं भगवान विश्वनाथ की संगीतमय आराधना नृत्य संगीत से होगा। मंदिर न्यास के पदाधिकारियों के अनुसार मां गंगा को सनातन परंपरा में ब्रह्मदेव के कमंडल से उत्पन्न माना जाता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार चक्रवर्ती सम्राट सगर के अश्वमेध यज्ञ के आयोजन में अश्व चोरी हो गया। सम्राट सगर के पुत्रों ने अश्व को ढूंढते समय कपिल मुनि से धृष्टता कर दी। क्रोधित कपिल मुनि ने सगर पुत्रों को भस्म कर दिया।

कालांतर में सम्राट सगर के वंशज भगीरथ ने अपने इन भस्म बांधवों की मुक्ति के लिए ब्रह्मदेव की घोर तपस्या की। ब्रह्मदेव ने मुक्ति का उपाय मां गंगा की जलधारा को बताया। परंतु मां गंगा का वेग पृथ्वी के लिए असहनीय था, अतः मां गंगा का धरावतरण असंभव प्रतीत होता था। दृढ़ संकल्प के स्वामी सम्राट भगीरथ ने हार नहीं मानी। भागीरथ ने इस समस्या के समाधान के लिए महादेव शिव की अखण्ड साधना की। महादेव के प्रसन्न होने पर भगीरथ ने अनुरोध किया कि गंगा जी के वेग को महादेव अपनी जटाओं में धारण कर मंद कर दें जिससे पृथ्वी माता, गंगा जी का प्रवाह धारण कर सकें। महादेव ने भगीरथ की याचना स्वीकार कर ली। इस प्रकार गंगा मां का धरावतरण संभव हो सका। ब्रह्मकमंडल से गंगा जी के सरिता स्वरूप में प्राकट्य का उत्सव गंगा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है।——————

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