नगर निगम कर्मचारी की आकस्मिक मृत्यु के बाद उसके आश्रित बेटे को नौकरी नहीं दिए जाने के मामले में नगर आयुक्त सुधीर कुमार को उच्च न्यायालय के समक्ष पेश होना पड़ा। दरअसल, नगर आयुक्त ने अदालत में जवाब दाखिल नहीं किया था और न ही वे व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुए, जिसके कारण उच्च न्यायालय ने उनके खिलाफ अवमानना का नोटिस जारी किया। मामला तब उत्पन्न हुआ जब सफाई कर्मचारी राजकुमार, जो कि स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत थे, की 1 अक्टूबर 2020 को अचानक मृत्यु हो गई।
राजकुमार की मृत्यु के बाद उनके बेटे गोलू ने मृतक आश्रित कोटे के तहत नौकरी के लिए आवेदन किया। इस संबंध में उच्च न्यायालय में अर्जी दी गई। गोलू ने न्यायालय में आरोप लगाया कि नगर निगम बिना किसी ठोस कारण के उसे नौकरी देने से मना कर रहा है। नगर आयुक्त ने इस बात को लेकर अदालत में अपना पक्ष रखा। उन्होंने गोलू के खिलाफ चल रहे आपराधिक मुकदमों का संदर्भ देते हुए रिपोर्ट पेश की, जो उनकी नियुक्ति के खिलाफ एक आधार बन गई।
नगर आयुक्त ने यह तर्क दिया कि गोलू का चरित्र सत्यापन रिपोर्ट में कानपुर पुलिस ने सूचित किया कि उसके खिलाफ चमनगंज थाने में गैंगस्टर अधिनियम के तहत मामला दर्ज है। इस स्थिति के चलते नगर आयुक्त का कहना है कि गोलू को नौकरी देने में कोई बाधा है। उन्होंने न्यायालय में स्पष्ट किया कि इस गंभीर आरोप की वजह से गोलू की आवेदन प्रक्रिया बाधित हो गई।
उच्च न्यायालय ने इस मामले को ध्यान में रखते हुए नगर आयुक्त की बातों पर विचार किया और उचित निर्णय की उम्मीद जताई। अब इस मामले में आगे की सुनवाई का इंतज़ार है, जिसमें यह तय होगा कि गोलू को मृतक के आश्रित कोटे के तहत नौकरी दी जा सकती है या नहीं। यह मामला स्थानीय निगम कर्मचारियों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, जो उनके परिवारों के भविष्य से जुड़ा है।
इस पूरे प्रकरण ने स्थानीय प्रशासन और न्यायिक प्रणाली के बीच का रिश्ता भी सवालों के घेरे में ला दिया है। नागरिकों के अधिकारों और उनके परिवारों की भलाई के लिए न्यायालय की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है, यह इस मामले के माध्यम से स्पष्ट होता है। आशा की जाती है कि उचित न्याय मिले और प्रशासनिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता बनी रहे।