वक्फ बिल के पारित होने के बाद से भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के खिलाफ मुस्लिम समुदाय में नाराजगी में इजाफा हुआ है। इस बीच, संघ प्रमुख मोहन भागवत ने एक महत्वपूर्ण बयान दिया है, जिसमें उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि औरंगजेब को आदर्श नहीं मानने वाले भारतीयों का संघ में स्वागत किया जाएगा। भागवत का यह कदम एक तरफ जहां हिंदुओं की एकजुटता को बढ़ाने के लिए संघ के प्रयासों का हिस्सा है, वहीं दूसरी ओर यह मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए भी एक रणनीति के रूप में देखा जा रहा है। उनके बयानों का क्या राजनीतिक असर होगा, यह जानना महत्वपूर्ण है।

भागवत ने कहा कि भारत में रहने वाले सभी लोग चाहे उनकी पूजा पद्धति या रहन-सहन अलग हो, लेकिन भारतीय संस्कृति एक है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि श्मशान, मंदिर और जल सभी हिंदुओं के लिए समान है। इस तरह के बयानों के जरिए संघ का उद्देश्य हिंदू समाज के विभिन्न पंथों, जातियों और समुदायों को एकजुट करना है। उन्होंने चार दिनों के अपने उत्तर प्रदेश प्रवास के दौरान संघ के पदाधिकारियों के साथ बैठकें भी कीं, ताकि विपक्ष के जातीय आधार पर दलितों और पिछड़ों को तोड़ने वाली रणनीतियों का सामना किया जा सके।

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि समाजवादी पार्टी (सपा) ने जातीय कार्ड खेलने के बाद भाजपा को काफी नुकसान पहुंचाया है। सपा ने पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यकों के लिए अपनी नीतियों को बढ़ावा देकर भाजपा की सीटों की संख्या को 64 से घटाकर 34 कर दिया। इसके बाद आरएसएस और भाजपा ने इस बात को समझा कि उन्हें पिछड़े और दलित हिंदुओं को एकजुट करने के लिए तुरंत कार्यक्रम बनाने की जरूरत है। यह न केवल हिंदू समुदाय को एकजुट करने की दिशा में है, बल्कि मुस्लिम वर्ग में भी एक छोटे से हिस्से को अपनी ओर खींचने का प्रयास है।

विशेषज्ञों का मानना है कि भाजपा और संघ ने अब गरीब और पिछड़ा मुसलमानों को अपने एजेंडे में शामिल करना शुरू कर दिया है। वक्फ बिल के पारित होने के बाद भाजपा का यह संदेश है कि यह बिल गरीब और कमजोर मुस्लिमों के हक में है। यदि भाजपा को इस प्रयास से मुस्लिम वोटों में 2-3 फीसदी वृद्धि भी मिलती है, तो यह उनके लिए फायदेमंद साबित होगा। संघ प्रमुख भागवत ने स्पष्ट संकेत दिया है कि कट्टरपंथी मुसलमानों को छोड़कर वो सभी को साथ लेकर चलने का इरादा रखते हैं।

आगे की रणनीति के तहत, संघ ने अनुसूचित जातियों के महापुरुषों की जयंती मनाने की योजना बनाई है, ताकि दलित युवाओं को अपनी ओर खींच सके। इसके अलावा, सामाजिक समरसता भोज आयोजन जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से भी भाजपा और संघ ने दलितों के बीच अपनी स्थिति मजबूत करने की शुरुआत की है। हालांकि, यह सवाल बना हुआ है कि क्या मुस्लिम समुदाय वास्तव में भाजपा की ओर आकर्षित होगा। वरिष्ठ पत्रकारों का मानना है कि मौजूदा परिस्थितियों में मुसलमानों का भाजपा की नीतियों की ओर आकर्षित होना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

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