एक बार फिर से लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (LIC) और ACESO आमने-सामने है। बीमा कंपनी ने विज्ञापन जारी कर पॉलिसीधारकों को सतर्क किया। LIC के विज्ञापन में कहा गया है कि कुछ गैर-रेगुलेटेड इकाइयाँ पॉलिसीधारकों के हितों को नजरअंदाज करते हुए LIC की बाजार स्थिति और संप्रभु गारंटी का लाभ उठाने की कोशिश कर रही हैं।
ACESO एक ऐसी फर्म है, जिसका घोषित उद्देश्य LIC के पॉलिसीधारकों को ‘मॉनेटाइज’ करना है। LIC ने 13 अगस्त को अखबारों में विज्ञापन देकर पॉलिसीधारकों को तीसरे पक्षों (जैसे ACESO) को पॉलिसी असाइन करने के प्रति सचेत किया था।
दरअसल, इस विवाद की जड़ में पॉलिसी असाइनमेंट का वह कॉन्सेप्ट है, जिसके तहत पॉलिसीधारकों को अपने अधिकार और लाभ को ‘असाइनी’ को ट्रांसफर करने की अनुमति दी गई है। इस मामले में ‘असाइनी’ एक ट्रस्ट है जिसे ACESO द्वारा स्थापित किया गया है। ACESO की वेबसाइट के अनुसार, उनके प्रस्ताव के तहत पॉलिसीधारक अपनी पॉलिसी की सरेंडर वैल्यू, जो उन्हें LIC से मिलती है, के बराबर भुगतान के आधार पर अपनी पॉलिसी ट्रस्ट को असाइन कर सकते हैं।
LIC के विज्ञापन के अनुसार, रेगुलेशन के दायरे से बाहर मौजूद कुछ इकाइयां पॉलिसीधारकों के हितों की कीमत पर LIC की बाजार स्थिति और संप्रभु गारंटी का फायदा उठाना चाहती हैं। इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि असाइनमेंट का विकल्प उन इकाइयों द्वारा उपलब्ध कराया जा रहा है, जो रेगुलेशन के दायरे से बाहर हैं और जिन्हें LIC से किसी तरह की मंजूरी नहीं मिली है।
इसके जवाब में ACESO ने भी विज्ञापन जारी किया है, जिसमें LIC के पॉलिसीधारकों से अपनी एंडोमेंट या मनीबैक पॉलिसी LIC के बजाय कंपनी को सौंपने का अनुरोध किया गया है। हालाँकि, LIC का कहना है कि यह मामला पॉलिसी की “ट्रेडिंग” से जुड़ा है, जो इंश्योरेंस एक्ट, 1938 (संशोधित 2015) का उल्लंघन है। वहीं, ACESO के संस्थापक केतन मेहता का दावा है कि LIC के विज्ञापन सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना का मामला बन सकते हैं।