राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का कंट्रोल चुनी हुई सरकार के हाथ में होगा। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली सरकार और राज्यपाल के बीच चल रहे अधिकारों की लंबी लड़ाई पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली में सिविल सर्वेंट्स के ट्रांसफर और पोस्टिंग के अधिकार पर आप सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय खंडपीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया। आदेश पढ़ते हुए सीजेआई ने कहा कि दिल्ली विधानसभा के सदस्य, दूसरी विधानसभाओं की तरह सीधे लोगों की तरफ से चुने जाते हैं। लोकतंत्र और संघीय ढांचे के सम्मान को सुनिश्चित किया जाना चाहिए। ऐसे में दिल्ली में चुनी हुई सरकार के पास अधिकार होना चाहिए।
– दिल्ली सरकार अन्य राज्यों की तरह प्रतिनिधि रूप का प्रतिनिधित्व करती है और संघ की शक्ति का कोई और विस्तार संवैधानिक योजना के विपरीत होगा।
देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा कि केंद्र और राज्य दोनों के पास कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन इस बात का ध्यान रखा जाए कि केंद्र का इतना ज्यादा दखल ना हो कि वह राज्य सरकार का काम अपने हाथ में ले ले। इससे संघीय ढांचा प्रभावित होगा। कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 239AA दिल्ली विधानसभा को कई शक्तियां देता है, लेकिन केंद्र के साथ संतुलन बनाया गया है। संसद को भी दिल्ली के मामलों में शक्ति हासिल है।
दिल्ली में सीएम और राज्यपाल के बीच जारी अधिकारों की लड़ाई पर सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया। इस पीठ में मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस एमआर शाह, कृष्ण मुरारी, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा शामिल रहे। पीठ ने प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण को लेकर दिल्ली सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मति से फैसला दिया।
दिल्ली में मुख्यमंत्री और उप राज्यपाल के बीच चल रही अधिकारों की लड़ाई साल 2015 में हाई कोर्ट पहुंची थी। इस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने अगस्त 2016 में राज्यपाल के पक्ष में फैसला सुनाया था। हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए आप सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की थी।
जहां 5 सदस्यीय संविधान बेंच ने जुलाई 2016 में आप सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि सीएम ही दिल्ली के एक्जीक्यूटिव हेड हैं। उपराज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह और सहायता के बिना स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा सीएम को दिल्ली का एक्जीक्यूटिव हेड बताए जाने के बाद भी अधिकारियों पर नियंत्रण जैसे कुछ मामलों को सुनवाई के लिए दो सदस्यीय रेगुलर बेंच के सामने भेजा गया। फैसले में दोनों जजों की राय अलग थी। इसके बाद ये मामला 3 सदस्यीय बेंच के पास गया।
उन्होंने पिछले साल जुलाई में केंद्र की मांग पर इसे संविधान पीठ के सामने भेज दिया। संविधान बेंच ने जनवरी में 5 दिन इस मामले पर सुनवाई की और 18 जनवरी को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। जिसपर आज फैसला सुनाया गया।