**कानपुर अग्निकांड: हृदय विदारक कहानी और दमकलकर्मियों की वीरता**

समय: रात के 9:20 बजे और स्थान: कानपुर। अचानक कंट्रोल रूम में एक कॉल आई, जिसमें बताया गया कि चमनगंज इलाके में एक इमारत में आग लग गई है। फायर टेंडर की टीम प्रेमनगर के उस घर के सामने पहुंची, जहां 4 मंजिला इमारत धधक रही थी। स्थानीय लोगों ने फायर विभाग के कर्मियों को सूचित किया कि बिल्डिंग के भीतर तीन बच्चियां फंसी हुई हैं। इस स्थिति में अग्निशमन अधिकारी प्रदीप कुमार शर्मा ने बताया कि उनके सामने दो महत्वपूर्ण लक्ष्यों थे: पहले तो आग को तेजी से बुझाना और दूसरे, इन बच्चियों को सुरक्षित बाहर निकालना। आग की तीव्रता के कारण उन्हें तुरन्त समझ में आ गया कि यह किसी केमिकल के फैलने का परिणाम है, जिससे आग काबू में नहीं आ रही है। इसके चलते उन्होंने दीवार को तोड़ा और अंदर प्रवेश किया, लेकिन उन्हें तीनों बच्चियों की उनकी जलती हुई लाशें मिलीं। यह दृश्य उनके लिए असहनीय था।

प्रदीप कुमार ने अपनी अनुभव को साझा करते हुए कहा कि आग इतनी भयंकर थी कि बिल्डिंग की दीवारें चटक रही थीं और तीव्र धुआं फैल रहा था। उनके साथी फायरकर्मियों ने जब बताया कि आग बुझने के बाद फिर से फैली है, तो उन्होंने समझा कि अंदर किसी केमिकल का इस्तेमाल हुआ है। 8 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद आग थोड़ी काबू में आई। बिल्डिंग के अंदर का दृश्य बहुत ही भयावह था—सिर्फ काली दीवारें और जल चुका सामान ही नजर आया।

फायरकर्मी आदर्श ने अपने जज्बात साझा करते हुए बताया कि उन्होंने दीवारों में होल करने का काम किया ताकि अंदर प्रवेश किया जा सके। जब उन्होंने दीवार तोड़ी, तो अंदर का मंजर देखकर वे सन्न रह गए। तीनों बच्चियां जिनकी लाशें एक-दूसरे के साथ जुड़ी हुई थीं, शायद एक-दूसरे का साहारा बनकर बचने की कोशिश कर रही थीं, लेकिन उन्हें बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं मिला। दरवाजे पर ताला लगा था, जिससे शायद उनकी जानें बच सकती थीं।

इकबाल अहमद, जो टेंडर की व्यवस्था देखते हैं, ने बताया कि उन्होंने 9 फायर टेंडरों को पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए 77 चक्कर लगाए, तब जाकर आग पर काबू पाया जा सका। सुबह 5:35 बजे के समय तक 5 लाख लीटर से ज्यादा पानी आग बुझाने में खर्च किया गया। इस कड़ी मेहनत ने आग को ठंडा किया लेकिन यह त्रासदी वहां की स्थायी यादों के साथ जीवित रहेगी, खासकर उन परिवारों के लिए जिन्होंने अपने प्रियजनों को खो दिया।

इस घटना ने सभी को हिला कर रख दिया है। मामा हाजी इशरत ने अपनी पोतियों को खोने के दुख को बयां करते हुए कहा कि उन्होंने लाशें अपने हाथों से निकालीं, लेकिन उनका शरीर कोयले का सा हो चुका था। यह बताना बहुत मुश्किल है कि वह त्रासदी उनके दिल पर कैसे बीती। इस अग्निकांड में माता-पिता समेत कुल 5 लोगों की जान गई, जिसका दुःख सभी के दिलों में है। यह घटना सिर्फ एक अग्निकांड नहीं, बल्कि एक ऐसी कहानी है जिसने सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि कैसे एक पल में सबकुछ बदल सकता है।

इस हादसे के बाद कानपुर में सुरक्षा को लेकर नई जागरूकता का दौर शुरू हो गया है, जिससे ऐसी भविष्य की घटनाओं से बचा जा सके। स्थानीय प्रशासन और अधिकारियों ने इसके प्रति गंभीरता दिखाई है, और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि सुरक्षा उपायों को मजबूती से लागू किया जाएगा।

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