गैरकानूनी धर्म परिवर्तन एक गम्भीर अपराध : हाईकोर्ट

-पक्षों के बीच समझौते के आधार पर मामला रद्द नहीं किया जा सकता-बलात्कार एक गैर समझौता योग्य समाज के खिलाफ अपराध हैप्रयागराज, 01 अप्रैल (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा कि गैर कानूनी धर्म परिवर्तन एक गम्भीर अपराध है। धर्म परिवर्तन के मामले में हृदय परिवर्तन होना चाहिए तथा मूल धर्म के सिद्धांतों के स्थान पर नए धर्म के सिद्धांतों में ईमानदारी से विश्वास होना चाहिए। हाईकोर्ट ने कहा कि जब बलपूर्वक अवैध धर्म परिवर्तन कराया जाता है तो यह एक गम्भीर अपराध है, जिसमें न्यायालय पक्षों के बीच समझौते के आधार पर कार्यवाही को रद्द नहीं कर सकती। कोर्ट ने कहा कि बलात्कार एक गैर-समझौता योग्य अपराध है। यह समाज के खिलाफ़ अपराध है।

हाईकोर्ट ने एक अभियुक्त द्वारा दायर आवेदन को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की, जिसके द्वारा भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) की धारा 420, 323, 376 और 344 तथा उत्तर प्रदेश धर्मांतरण रोकथाम अधिनियम, 2020 की धारा 3 और 4 के तहत उसके खिलाफ आरोप पत्र और पूरी कार्यवाही को रद्द करने की मांग की गई थी।

जस्टिस मंजू रानी चौहान ने टिप्पणी की कि धर्म परिवर्तन के मामले में हृदय परिवर्तन होना चाहिए तथा मूल धर्म के सिद्धांतों के स्थान पर नए धर्म के सिद्धांतों में ईमानदारी से विश्वास होना चाहिए।

मामले के अनुसार 2021 में विपक्षी महिला ने तीन लोगों के खिलाफ थाना स्वार जिला रामपुर में एफआईआर दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि फेसबुक के जरिए उसकी दोस्ती राहुल कुमार नाम के एक शख्स से हुई। उक्त शख्स ने उसका मोबाइल नंबर ले लिया और बार-बार उसे कॉल करता था। करीब एक साल तक फेसबुक पर चैटिंग करने के बाद कथित आरोपित ने उससे शादी का प्रस्ताव रखा। कथित तौर पर उसने शादी के लिए अपनी सहमति दे दी और उसके अनुरोध पर वह रामपुर पहुंच गई। जहां से उसे नवाबनगर ले जाया गया। कहा गया कि उसे छह महीने तक उसके घर में रखा गया और रहने की अवधि के दौरान उसे पता चला कि उक्त व्यक्ति एक मुस्लिम लड़का है। इसलिए उसने कहा कि उसका उससे विवाह करना संभव नहीं है क्योंकि उसका धर्म हिंदू है।

शादी से इनकार करने पर पीड़िता को कथित तौर पर मोहम्मद अयान (असली नाम) ने पीटा और उसकी सहमति के बिना उसके साथ जबरदस्ती शारीरिक सम्बंध बनाए। यह भी आरोप लगाया गया कि उसे छह महीने तक अवैध रूप से हिरासत में रखा गया और उसके साथ यौन उत्पीड़न किया गया। उसने अपने दो दोस्तों को भी बुलाया, जिन्होंने उसके साथ जबरदस्ती बलात्कार किया। पीड़िता किसी तरह वहां से भागने में कामयाब रही और उसने एफआईआर दर्ज कराई। उसने यह भी खुलासा किया कि राहुल उर्फ मोहम्मद अयान ने फेसबुक के जरिए दोस्ती करके कई लड़कियों को फंसाकर उनका शोषण किया।

आवेदक तौफिक अहमद उन आरोपितों में से एक है, जिसने कथित तौर पर उसके साथ बलात्कार किया। उसे पता चला कि मदरसे द्वारा हिंदू लड़कियों के शोषण के लिए पैसे दिए जा रहे हैं, जिसके बारे में आवेदक ने उसे बताया। याची के वकील ने कोर्ट में कहा कि दोनों पक्षों ने समझौता कर लिया है।

वकील की दलीलें सुनने के बाद हाईकोर्ट ने कहा, “पक्षों के बीच हुए समझौते को एक प्रमुख कारक के रूप में नहीं माना जा सकता है। जिसके आधार पर कम सज़ा दी जा सकती है। यह ऐसा मामला नहीं है जिसे पक्षों के बीच समझौता करके सुलझाया जा सके। चूँकि अदालत हमेशा इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं हो सकती है कि मामले में समझौता करने में पीड़िता द्वारा दी गई सहमति एक वास्तविक सहमति है। इसलिए इस बात की पूरी संभावना है कि उस पर दोषियों द्वारा दबाव डाला गया हो या इतने सालों में उसके द्वारा झेले गए आघात ने उसे समझौता करने के लिए मजबूर किया हो।“

कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति द्वारा इस्लाम में धर्म परिवर्तन को सद्भावनापूर्ण कहा जा सकता है, यदि वह वयस्क है और स्वस्थ दिमाग का है तथा अपनी स्वतंत्र इच्छा से अपने आस्था और विश्वास के कारण इस्लाम धर्म अपनाता है।

न्यायालय ने कहा, “यदि धर्म परिवर्तन धार्मिक भावना से प्रेरित होकर नहीं किया गया है और अपने स्वार्थ के लिए किया गया है, बल्कि केवल अधिकार के दावे के लिए आधार बनाने या विवाह से बचने के उद्देश्य से या ईश्वर (अल्लाह) और मोहम्मद को उसका पैगम्बर मानने की आस्था और विश्वास के बिना किसी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए किया गया है, तो धर्म परिवर्तन सद्भावनापूर्ण नहीं होगा। “न्यायालय ने आगे दोहराया कि हत्या, बलात्कार, डकैती आदि जैसे गंभीर अपराधों या भारतीय दंड संहिता के तहत मानसिक विकृति के अन्य अपराधों या भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम जैसे विशेष कानूनों के तहत नैतिक पतन के अपराधों या उस क्षमता में काम करते हुए लोक सेवकों द्वारा किए गए अपराधों के संबंध में, अपराधी और पीड़ित के बीच समझौते को कोई कानूनी मंजूरी नहीं दी जा सकती है।

कहा गया कि ऐसे अपराधों के सम्बंध में पीड़ित और अपराधी के बीच कोई समझौता, आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने का कोई आधार प्रदान नहीं कर सकता है। निहित शक्ति का प्रयोग उन अभियोगों में नहीं किया जाना चाहिए जिनमें जघन्य और गंभीर अपराध शामिल हैं। ऐसे अपराध निजी प्रकृति के नहीं होते हैं और समाज पर गम्भीर प्रभाव डालते हैं।

आईपीसी की धारा 376 और 392 के तहत अपराध गंभीर और जघन्य अपराधों की श्रेणी में आते हैं। उन्हें समाज के खिलाफ अपराध माना जाता है, न कि केवल व्यक्ति के खिलाफ और इसलिए, समाज पर गंभीर प्रभाव डालने वाले इन धाराओं के तहत अपराधों के लिए आपराधिक कार्यवाही को इस आधार पर संहिता की धारा 482 के तहत शक्ति का प्रयोग करके रद्द नहीं किया जा सकता है कि पक्षों ने अपने पूरे विवाद को आपसी समझौते के माध्यम से आपस में सुलझा लिया है।

इसके अलावा अदालत ने कहा कि बलात्कार के अपराध के संबंध में किसी महिला के सम्मान के विरुद्ध कोई भी समझौता या समाधान, जो उसके जीवन की जड़ को हिलाकर रख दे और उसके सर्वोच्च सम्मान पर गंभीर आघात के समान हो, तथा उसके सम्मान और गरिमा दोनों को ठेस पहुंचाए, न्यायालय को स्वीकार्य नहीं है।

न्यायालय ने कहा, “किसी अन्य धर्म में धर्मांतरण के लिए मूल रूप से स्वस्थ दिमाग वाले किसी वयस्क व्यक्ति को अपनी स्वतंत्र इच्छा से अपने विश्वास और निजी संबंधों में परिवर्तन करना होता है। जिसे वह ब्रह्मांड, अपना निर्माता या रचयिता मानता है, जिसके बारे में वह मानता है कि वह अचेतन प्राणियों और ब्रह्मांड की शक्तियों के अस्तित्व को नियंत्रित करता है।

न्यायालय ने कहा कि, “अधिनियम, 2020 का उद्देश्य गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या किसी भी धोखाधड़ी के माध्यम से एक धर्म से दूसरे धर्म में गैरकानूनी परिवर्तन पर रोक लगाना है। इसी के साथ कोर्ट ने याची के आवेदन को खारिज कर दिया और आरोपित के खिलाफ कार्यवाही रद्द करने से इनकार कर दिया।

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By admin

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