पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की जयंती पर चंद्रशेखर भवन में हवन व पुष्पाजंलि कार्यक्रम का आयोजन
नई दिल्ली, 17 अप्रैल (हि.स.)। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की जयंती पर गुरुवार को यहां के विष्णु दिगंबर मार्ग स्थित चंद्रशेखर भवन में हवन एवं पुष्पांजलि कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मौजूद लोगों ने पूर्व प्रधानमंत्री के चित्र पर पुष्प अर्पित कर उनको श्रद्धांजलि दी। चंद्रशेखर 10 नवंबर 1990 से 21 जून 1991 तक देश के प्रधानमंत्री रहे।कार्यक्रम में उपस्थित युवा भारती ट्रस्ट के सचिव एवं पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के राजनीतिक सलाहकार रहे एचएन शर्मा ने कहा कि चंद्रशेखर जी की यह 98वीं जयंती है। वह अक्सर अपना जन्मदिन मनाया करते थे और परंपरागत मन से मनाया करते थे। वह हवन का आयोजन करते थे और प्रसाद में हलवा और चना दिया करते थे। उसी पद्धति से हम भी उनका जन्मदिवस मनाते हैं। शर्मा ने कहा कि चंद्रशेखर जी अपने कार्यों में बहुत विश्वास करते थे। सबसे अच्छी बात उनकी थी कि वो देश में अधिक से अधिक वृक्षारोपण के पक्षधर थे। वह प्रकृति को बहुत पसंद करते थे। वह सरल स्वभाव के थे। प्रधानमंत्री रहते हुए एक दिन भी वह प्रधानमंत्री निवास में नहीं सोए। वह गांव चले जाते थे।एचएन शर्मा ने बताया कि पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने कई ट्रस्ट का निर्माण किया। हरियाणा के भोंडसी में भारत यात्रा ट्रस्ट बनाया। इसी तरह जयप्रकाश नारायण ट्रस्ट, शहीद स्मारक ट्रस्ट जैसे कई ट्रस्ट का निर्माण किया। वह जहां भी रहे वहां उन्होंने मंदिर जरूर बनवाया। अपने गांव में मंदिर बनवाया। भोंडसी में मंदिर बनवाया। उनको अपनी परंपरा से बहुत लगाव था।चन्द्रशेखर का जन्म 17 अप्रैल 1927 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में स्थित इब्राहिमपट्टी गांव के एक किसान परिवार में हुआ था। वह 1977 से 1988 तक जनता पार्टी के अध्यक्ष रहे। 25 जून 1975 को आपातकाल घोषित किए जाने के समय आंतरिक सुरक्षा अधिनियम के तहत उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि उस समय वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के शीर्ष निकायों, केंद्रीय चुनाव समिति तथा कार्य समिति के सदस्य थे। चन्द्रशेखर सत्तारूढ़ पार्टी के उन सदस्यों में से थे जिन्हें आपातकाल के दौरान गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था।चन्द्रशेखर ने 6 जनवरी 1983 से 25 जून 1983 तक कन्याकुमारी से नई दिल्ली में राजघाट तक लगभग 4260 किलोमीटर की पदयात्रा की थी। उनके इस पदयात्रा का एकमात्र लक्ष्य था– लोगों से मिलना एवं उनकी महत्वपूर्ण समस्याओं को समझना। उन्होंने सामाजिक एवं राजनीतिक कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने के उद्देश्य से केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा सहित देश के विभिन्न भागों में लगभग पंद्रह भारत यात्रा केंद्रों की स्थापना की थी ताकि वे देश के पिछड़े इलाकों में लोगों को शिक्षित करने एवं जमीनी स्तर पर कार्य कर सकें। वर्ष 1984 से 1989 तक की संक्षिप्त अवधि को छोड़ कर 1962 से वे संसद के सदस्य रहे। वर्ष 1989 में उन्होंने अपने गृह क्षेत्र बलिया और बिहार के महाराजगंज संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा एवं दोनों ही चुनाव जीते। बाद में उन्होंने महाराजगंज की सीट छोड़ दी थी।————-