ञानवापी मामले में आज (बुधवार) को एक अहम सुनवाई होने वाली है। जिसमें यह तय किया जाना है कि ज्ञानवापी की सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक हो या न हो?
यह मामला जिला जज की अदालत में ASI की वैज्ञानिक सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक करने या न करने से सम्बंधित 3 अर्जियों पर सुनवाई होगी।
वाराणसी के जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की कोर्ट में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की वैज्ञानिक सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक करने या न करने से सम्बंधित तीन अर्जियों पर सुनवाई होगी।
अदालत को पिछली सुनवाई पर ही आदेश देना था, लेकिन निचली कोर्ट में सर्वे की दूसरी प्रति दाखिल होने की वजह से 24 जनवरी यानि आज के लिए टाल दिया था। कोर्ट ने पूर्व पक्षकारों से आपत्ति भी मांगी है।
हिंदुओं का क्या तर्क है
बता दें कि हिंदुओं का तर्क है कि यह बाबा विश्वनाथ मंदिर का हिस्सा है, जिसे औरंगजेब के शासनकाल में ध्वस्त कर उस पर मस्जिद बना दी गई थी। उसका ज्ञानवापी नाम होना ही इसका प्रमाण है, जिसका अर्थ ‘ज्ञान का कुंआ’ होता है। दूसरा, प्रमाण उस इमारत की डिजाइन एवं उनकी दीवारों पर अंकित स्वस्तिक एवं त्रिशूल हैं, जो हिंदू धर्म के प्रमुख प्रतीक हैं। तीसरे, मौजूदा वजूखाना जहां है, वहां शिवलिंग का स्वरूप है, उसके साथ ‘छेड़छाड़’ की गई है।
अगर सर्वे से इतर इस इमारत के कुछ हिस्से का उत्खनन किया जाए तो सच उसी तरह से सामने आ जाएगा जैसा कि बाबरी मस्जिद मामले में हुआ था। पर हाईकोर्ट ने और फिर सर्वोच्च अदालत ने एएसआई के लिखित आासन पर भरोसा करते हुए सर्वे की इजाजत दी है कि वह ‘उत्खनन नहीं करेगी और मस्जिद के स्थापत्य को कोई नुकसान न पहुंचाएगी’।
इसके पहले वह अदालत से इजाजत लेगी। हालांकि इससे पूरा सच शायद ही बाहर आ पाए। पर ऐसा लगता है कि अदालत इस संवेदनशील मामले में किसी जल्दीबाजी में नहीं, प्रक्रिया का पालन करती हुई आगे बढ़ना चाहती है।
वहीं, दूसरे पक्ष अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी को जारी सर्वे से गैरहाजिर होने की जरूरत नहीं थी। सर्वे वस्तुस्थिति की एक जांच ही तो है। और जब वह ज्ञानवापी के मस्जिद को लेकर एकदम आस्त है तो फिर उसे सच का सामना करना चाहिए।
हालांकि हिंदुओं के दावे के पक्ष में जाते प्रमाणों को देखने के लिए किसी दिव्यदृष्टि या विशेषज्ञता की आवश्यकता नहीं है तो कमेटी उनसे कैसे आंखें मूंद सकती है। बाकी अवाम के लिए यही सबसे बड़ी राहत है कि एक विवाद अपने न्यायिक अंत की ओर बढ़ रहा है।