जी20 शिखर सम्मेलन जब कामयाबी के साथ खत्म हो रहा है, तो उसकी घोषणाओं और उसमें बने प्लान को देखने के बाद संकेत मिल रहे हैं, कि आखिर शी जिनपिंग क्यों नई दिल्ली नहीं आए। भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरीडोर की घोषणा होने के बाद आसानी से समझा जा सकता है, कि चीनी राष्ट्रपति ने क्यों दिल्ली से दूरी बना ली।
नई दिल्ली में जी20 शिखर सम्मेलन के मौके पर, भारत को मध्य पूर्व और यूरोप से जोड़ने वाली एक बहुराष्ट्रीय रेल और शिपिंग परियोजना की घोषणा की गई है, जिसे क्षेत्र में चीन की आर्थिक महत्वाकांक्षाओं के लिए एक चुनौती के रूप में देखा जा रहा है। जाहिर है, चीन को ये प्लान पसंद नहीं आया है, लिहाजा चीन इसपर आग बबूला है और आग उगल रहा है।
ये आर्थिक गलियारा, जिसमें भारत, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, जॉर्डन, इज़राइल और यूरोपीय संघ शामिल होंगे, वो व्यापार को बढ़ावा देने के साथ साथ, ऊर्जा संसाधन वितरित करने और डिजिटल कनेक्टिविटी में सुधार करने में मदद करेंगे, लिहाजा इसे एक मास्टरस्ट्रोक के साथ साथ गेमचेंजर कहा जा रहा है।
भारत के लिए सबसे खास बात ये है, कि इस कॉरीडोर के जरिए वो समुद्री रास्ते से मिडिल ईस्ट से जुड़ जाएगा और फिर मिडिल ईस्ट के जरिए तुर्की को बायपास करते हुए ग्रीस चला जाएगा। यानि, भारत ने तुर्की को हमेशा के लिए साइड करने का प्लान तैयार कर लिया है। यानि, एक तीर से कई निशाने लगाए गये हैं, इसीलिए कई एक्सपर्ट, इस कॉरीडोर को मिडिल ईस्ट में भारत की चाणक्य नीति भी कह रहे हैं।
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने कहा, कि ये नेटवर्क “दूरगामी निवेश” के लिए बाइडेन के दृष्टिकोण को दर्शाता है जो “प्रभावी अमेरिकी नेतृत्व” और अन्य देशों को भागीदार के रूप में गले लगाने की इच्छा से आता है।
उन्होंने कहा, कि उन्नत बुनियादी ढांचे से आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा, मध्य पूर्व के देशों को एक साथ लाने में मदद मिलेगी और उस क्षेत्र को “चुनौती, संघर्ष या संकट के स्रोत” के बजाय आर्थिक गतिविधि के केंद्र के रूप में स्थापित किया जाएगा, जैसा कि हाल के इतिहास में हुआ है।
भारत के साथ मिलकर अमेरिका, जी20 समूह में विकासशील देशों के लिए वाशिंगटन को एक वैकल्पिक भागीदार और निवेशक के रूप में पेश करके वैश्विक बुनियादी ढांचे पर चीन के बेल्ट एंड रोड जोर का मुकाबला करना चाहता है।
एक कार्यक्रम की घोषणा करते हुए, अमेरिकी नेता ने कहा, कि यह समझौता स्वच्छ ऊर्जा, स्वच्छ बिजली और समुदायों को जोड़ने के लिए केबल बिछाने के लिए “अनंत अवसर” खोलेगा।
शिखर सम्मेलन के मेजबान भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, कि “आज, जब हम इतनी बड़ी कनेक्टिविटी पहल की शुरुआत कर रहे हैं, तो हम आने वाली पीढ़ियों के लिए, बड़े सपने देखने के बीज बो रहे हैं।”
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, कि “सभी क्षेत्रों के साथ कनेक्टिविटी बढ़ाना भारत के लिए एक प्रमुख प्राथमिकता रही है। और हमारा मानना है, कि कनेक्टिविटी न केवल विभिन्न देशों के बीच आपसी व्यापार को बढ़ाने का, बल्कि आपसी विश्वास को भी बढ़ाने का एक साधन है।”
भारत के साथ साथ यूरोपीय और अमेरिकी एक्सपर्ट, इस प्रोजेक्ट को गेमचेंजर बता रहे हैं।
एक्सपर्ट का कहना है, कि यह भारत, मध्य पूर्व और यूरोप को जोड़ने के लिए बनाया गया एक आर्थिक गलियारा है। इसमें रेलवे लाइनें और शिपिंग लाइनें शामिल होंगी, जो संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, जॉर्डन और इज़राइल से होकर गुजरेंगी।
हालांकि, ये कॉरीडोर कैसे बनेगा इसको लेकर फिलहाल जानकारी ज्यादा नहीं है, लेकिन इस घोषणा के दौरान मौजूद अमेरिकी और यूरोपीय अधिकारियों ने इसे गेम-चेंजर, ऐतिहासिक बताया है। उन्होंने कहा कि इससे भारत और यूरोप के बीच व्यापार समय में 40 प्रतिशत की कटौती होगी।
सबसे दिलचस्प बात ये थी, कि इस सौदे की घोषणा के दौरान चीन मौजूद नहीं था।
रिपोर्ट के मुताबिक, चीन इस घोषणा के समय कार्यक्रम में मौजूद नहीं था और ऐसा लगता है, क्योंकि ये सीधे तौर पर चीन की विशाल बेल्ट और रोड बुनियादी ढांचा पहल को टक्कर देने की एक स्पष्ट योजना है। चीन ने बीआरई प्रोजेक्ट की घोषणा, साल 2013 में की गई थी, जिसे एशिया, अफ्रीका और यूरोप को जोड़ने के लिए डिज़ाइन किया गया है और चीन ने करीब 150 देशों को इसमें शामिल भी किया, लेकिन पिछले 10 सालों में बीआरई प्रोजेक्ट की वजह से दर्जनों देश भारी आर्थिक संकट में फंस गये हैं और दर्जनों देशों में ये प्रोजेक्ट ठप पड़ गया है।
सऊदी अरब के अल एखबरिया टीवी ने शिखर सम्मेलन में क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के हवाले से कहा, कि नई परियोजना में बिजली, हाइड्रोजन और रेलवे के लिए पाइपलाइन शामिल होंगी और अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा में योगदान दिया जाएगा।
अमेरिका के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन फाइनर ने नई दिल्ली में ब्लॉक के वार्षिक शिखर सम्मेलन में संवाददाताओं से कहा, कि इस सौदे से क्षेत्र के निम्न और मध्यम आय वाले देशों को लाभ होगा और वैश्विक वाणिज्य में मध्य पूर्व के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभायी जा सकेगी।
अमेरिकी अधिकारियों ने कहा है, कि इसका उद्देश्य मध्य पूर्व के देशों को रेलवे से जोड़ना और उन्हें बंदरगाह द्वारा भारत से जोड़ना है, जिससे शिपिंग समय, लागत और ईंधन के उपयोग में कटौती करके खाड़ी से यूरोप तक ऊर्जा और व्यापार के प्रवाह में मदद मिलेगी।
सौदे के लिए एक समझौता ज्ञापन पर यूरोपीय संघ, भारत, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, अमेरिका और अन्य G20 भागीदारों द्वारा हस्ताक्षर किए जाने की तैयारी है।
हालांकि, फिलहाल ये पता नहीं चल पाया है, कि इस प्रोजेक्ट में कितना खर्च आएगा, लेकिन चीन की पहली प्रतिक्रिया में उसका डर जरूर दिख रहा है, क्योंकि इससे उसका बीआरई प्रोजेक्ट बेमतलब रह जाएगा।
भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरीडोर के निर्माण के बाद चीन का बीरआई बेमतलब का रह जाएगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि इस क्षेत्र में पड़ने वाले देश फिर बीआरआई का इस्तेमाल नहीं करेंगे, और जो देश चीन के बीआरआई से जुड़े हैं, उन देशों की अर्थव्यवस्था ही ऐसी नहीं है, कि उससे कोई लाभ मिल पाए। उदाहरण के लिए पाकिस्तान, अफगानिस्तान जैसे देश।
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के भोंपू ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, कि “मध्य पूर्व में चीन को अलग-थलग करने का अमेरिका का असली उद्देश्य, जिसका क्षेत्र के साथ सहयोग हाल के वर्षों में गति पकड़ रहा है, कोई फल नहीं देगा।”
चीन के रेनमिन विश्वविद्यालय में चोंगयांग इंस्टीट्यूट फॉर फाइनेंशियल स्टडीज के एक वरिष्ठ शोधकर्ता झोउ रोंग ने शनिवार को ग्लोबल टाइम्स को बताया, कि अमेरिका के पास परिवहन नेटवर्क को सही मायने में मिडिल ईस्ट में बढ़ाने की अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए वास्तविक इरादे और क्षमता दोनों का अभाव है।
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, कि ‘अमेरिका बोलता बहुत है, लेकिन करता काफी कम है।’
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, कि ओबामा प्रशासन के दौरान, तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने घोषणा की थी, कि अमेरिका एक “न्यू सिल्क रोड” को प्रायोजित करेगा जो अफगानिस्तान से निकलेगी ताकि देश को अपनी आर्थिक क्षमता बढ़ाने के लिए अपने पड़ोसियों के साथ बेहतर ढंग से जोड़ा जा सके, लेकिन यह पहल कभी सफल नहीं हो सकी।
चीनी विशेषज्ञ झोउ ने कहा, कि “बाइडेन प्रशासन स्पष्ट रूप से फिर से गुट की राजनीति में शामिल हो रहा है और चीन विरोधी गुट बनाने के लिए एकजुट हो रहा है।”
दरअसल, चीन इसलिए डरा हुआ है, कि वो अपने बीआरआई प्रोजेक्ट में अरबों-अरब डॉलर झोंक चुका है और उससे इनकम कुछ नहीं हो रहा है। जैसे, पाकिस्तान को कर्ज में डूबोकर चीन ने बीआरआई प्रोजेक्ट के तहत चायना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरीडोर (सीपीईसी) तो बना लिया, लेकिन सीपीईसी वीरान और सुनसान पड़ा रहता है, क्योंकि इन रास्तों से व्यापार करने वाला कोई है ही नहीं और पाकिस्तान के निर्यात का जो हाल है, वो किसी से छिपा नहीं है। लिहाजा, ये प्रोजेक्ट, चीन की अर्थव्यवस्था पर एक बड़ा हमला साबित होने वाला है और चीन की बौखलाहट को आसानी से समझा जा सकता है।