महाकुंभ मेला एक ऐसा अवसर है, जहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु गंगा-जमुनी संगम पर आते हैं। इन श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या ने स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर उत्पन्न किए हैं। जैसे कि प्रयागराज के सूर्या ने बताया, पहले वह कबाड़ खरीदने का काम करते थे, लेकिन महाकुंभ के दौरान सवारियों को लाने-ले जाने का काम उन्हें अधिक लाभदायक लगा। सुर्या ने मेला क्षेत्र में 40 दिन तक सवारी ढोने का कार्य किया और दिन में 500 रुपए की बजाय अब वह 2000 से अधिक कमाने लगे। हालांकि, जब भीड़ कम हो गई, तब भी उन्हें सवारी मिलना जारी है।
महाकुंभ के दौरान, प्रशासन ने विभिन्न बॉर्डर पर पार्किंग की व्यवस्था की, जिससे श्रद्धालुओं को संगम तक पहुंचने में सुविधा हो सके। लेकिन, पार्किंग स्थल से संगम नोज तक पहुँचने के लिए लोगों को 3 से 4 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था। यही कारण था कि स्थानीय युवाओं ने अपनी बाइक पर श्रद्धालुओं को बैठाकर उन्हें संगम क्षेत्र तक पहुँचाने का कार्य शुरू किया। इस दौरान लगभग 2000 ठेले और 2500 बाइक संगम के आसपास चल रहे थे, जिससे युवाओं को अच्छे खासे आय के अवसर मिले।
मेले के दौरान ठेला चलाने वाले पिंटू ने बताया कि पहले वह छोटे-मोटे काम करते थे, जिससे मुश्किल से 500 से 600 रुपए ही मिलते थे, लेकिन मेले के दौरान उन्होंने ठेले पर सवारी ढोकर हर दिन 2 से 3 हजार रुपए कमाए। इसी तरह, फूलपुर के नमित कुमार ने भी अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि पहले उनके ठेले की कोई खास कद्र नहीं होती थी, लेकिन अब लोग बड़ी श्रद्धा से उस पर चढ़ते हैं। मेला समाप्त होने के बावजूद भी, उन्हें सवारी मिल रही है और वे उसी तरह से यात्रियों को संगम तक पहुँचाने का कार्य जारी रखे हुए हैं।
एक गणना के अनुसार, महाकुंभ के दौरान, ठेला चलाने वाले व्यक्तियों ने 45 दिन में लगभग 81 करोड़ रुपए का व्यवसाय किया। अगर हम बाइक चलाने वालों की बात करें, तो एक बाइक इंसान ने एक बार में दो सवारी को ढोकर 6 हजार तक रोज कमाने का दावा किया। कुल मिलाकर उनके द्वारा कमाई गई राशि 67.5 करोड़ रुपए के आसपास पहुंच गई थी।
हमारी बातचीत में करछना के अनिरुद्ध प्रताप ने कहा, “महाकुंभ की भीड़ देखकर मैंने भी सवारी ढोना शुरू कर दिया। पहले दिन की कमाई ने मुझे प्रेरित किया और मैंने नई बाइक खरीदने का निर्णय लिया।” इस प्रकार, महाकुंभ ने न केवल श्रद्धालुओं के लिए महत्वपूर्ण सेवा प्रदान की, बल्कि स्थानीय युवाओं के लिए आर्थिक रूप से भी सशक्त बनाने वाला अनुभव बना।
इसलिए, महाकुंभ न केवल धार्मिक आस्था का स्थान है, बल्कि यह स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार का एक महत्वपूर्ण साधन भी बन गया है। इससे सामाजिक और आर्थिक दोनों पहलुओं में बदलाव देखने को मिला है।