दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि पारिवारिक अदालतों को वैवाहिक विवाद में पक्षों को उनके बीच संभावित समझौते के लिए अदालत के परामर्शदाता के पास जाने का निर्देश देते समय लंबी तारीख देने से बचना चाहिए।
न्यायमूर्ति नवीन चावला की पीठ ने 18 अक्टूबर को सुनवाई के लिए निर्धारित एक मामले की तारीख 8 अगस्त करते हुए कहा कि लंबे समय तक स्थगन अनावश्यक है, खासकर लंबित वैवाहिक मामलों की संख्या को देखते हुए।
न्यायाधीश ने कहा, “भले ही विभिन्न प्रकृति के लगभग 4,000 वैवाहिक मामले विद्वान पारिवारिक न्यायालय के समक्ष लंबित हैं, फिर भी इतने लंबे स्थगन की आवश्यकता नहीं है।” उन्होंने कहा कि अदालत को कोर्ट काउंसलर के समक्ष याचिका/काउंसलिंग की कार्यवाही पर नियमित आधार पर नजर रखनी होगी। यदि कोर्ट मामले को इतनी लंबी तारीख के लिए स्थगित कर देता है तो ऐसी निगरानी नहीं हो सकती है।”
यह मामला एक पति का है जो उचित समय सीमा के भीतर अपनी तलाक की याचिका का निपटारा चाहता है। पारिवारिक अदालत ने सौहार्दपूर्ण समाधान पर पहुंचने की संभावना तलाशने के लिए दोनों पक्षों को कोर्ट काउंसलर के पास भेजा था और आगे की कार्यवाही 18 अक्टूबर तक के लिए स्थगित कर दी थी। पति का कहना था कि सौहार्दपूर्ण समाधान की संभावना नहीं थी, जिससे इतना लंबा स्थगन अनावश्यक हो गया। पत्नी के वकील ने सुनवाई की तारीख आगे बढ़ाने पर कोई आपत्ति नहीं जताई।
न्यायमूर्ति चावला ने कहा कि पारिवारिक अदालतों को पार्टियों को कोर्ट काउंसलर के पास रेफर करते समय लंबे स्थगन से बचना चाहिए। उन्होंने पारिवारिक अदालत से अनुचित स्थगन से बचने और मामले के त्वरित फैसले को प्राथमिकता देने का आग्रह किया।