मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPM) की 24वीं कांग्रेस के लिए तैयार किए गए राजनीतिक प्रस्ताव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को फासिस्ट या नियो फासिस्ट नहीं कहा गया है। इस प्रस्ताव के मसौदे को CPM केंद्रीय समिति ने कोलकाता में 17 से 19 जनवरी के बीच अपनी बैठक में मंजूरी दी थी। अब यह प्रस्ताव तमिलनाडु के मदुरै में आगामी अप्रैल महीने में होने वाली सीपीCPM एम कांग्रेस में पेश किया जाएगा। इस प्रस्ताव को लेकर पार्टी के भीतर और बाहर विवाद शुरू हो गया है, क्योंकि CPM के इस रुख पर कांग्रेस और सीपीआई ने अपनी असहमति जताई है।

CPM के प्रस्ताव में क्या कहा गया? 
CPM के राजनीतिक प्रस्ताव में यह साफ तौर पर कहा गया है कि मोदी सरकार को फासिस्ट या नियो फासिस्ट नहीं माना गया है। प्रस्ताव में पार्टी ने यह स्पष्ट किया कि भारतीय राज्य को नियो फासिस्ट के रूप में नहीं देखा गया है, क्योंकि इसके कुछ कदम फासिस्ट विचारधारा से मेल नहीं खाते हैं। CPM के इस प्रस्ताव का उद्देश्य यह दिखाना था कि सरकार की नीतियां पूरी तरह से फासिस्ट नहीं हैं, बल्कि उनमें कुछ तत्त्व ऐसे हैं, जो लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का पालन करते हैं। इस प्रस्ताव को केंद्रीय समिति ने मंजूरी दी थी और अब इसे राज्यों की यूनिट्स को भेजा गया है, ताकि उस पर चर्चा की जा सके।

मोदी सरकार ने कई ऐसी नीतियां लागू की हैं
CPM के इस प्रस्ताव पर कांग्रेस और सीपीआई ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। कांग्रेस ने इस प्रस्ताव की आलोचना करते हुए कहा कि यह मोदी सरकार के असल रूप को छिपाने की कोशिश है। कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि मोदी सरकार ने कई ऐसी नीतियां लागू की हैं, जो भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरे का संकेत हैं, और CPM को इनसे निपटने के लिए अपने रुख में बदलाव करना चाहिए। वहीं, CPM की गठबंधन सहयोगी पार्टी CPI (कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया) ने भी इसे लेकर अपना विरोध व्यक्त किया है। CPI के केरल यूनिट के सचिव बिनॉय विश्वम ने कहा कि धर्म और आस्था का इस्तेमाल राजनीतिक लाभ के लिए करना, फासीवादी विचारधारा का हिस्सा है। उन्होंने बीजेपी सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए इसे फासिस्ट कहा। CPI ने CPM से मांग की कि वह अपनी दृष्टिकोण में बदलाव करे और मोदी सरकार को फासिस्ट मानने से बचने की जल्दबाजी को सही ठहराए।

स्थिति में सरकार को फासिस्ट कहना जल्दीबाजी
CPM  का कहना है कि उनका यह निर्णय तात्कालिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है, और वे चाहते हैं कि यह प्रस्ताव व्यापक विचार-विमर्श के बाद सभी यूनिट्स के पास पहुंचे। पार्टी के नेताओं का कहना है कि वे सरकार की नीतियों का आलोचनात्मक रूप से विश्लेषण कर रहे हैं, लेकिन किसी भी स्थिति में सरकार को फासिस्ट कहना जल्दीबाजी होगी। इसके बजाय, वे सरकार की नीतियों को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं, न कि उन्हें पूरी तरह से नकारने की।

CPM का यह नया रुख राजनीतिक रूप से विवादास्पद
यह प्रस्ताव भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ का संकेत है, क्योंकि CPM और अन्य वामपंथी दलों का हमेशा से यह रुख रहा है कि वे सरकार की नीतियों का विरोध करते हैं। हालांकि, CPM का यह नया रुख राजनीतिक रूप से विवादास्पद हो सकता है, क्योंकि यह बीजेपी और मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी दलों के गठबंधन में एक नई खाई पैदा कर सकता है। कांग्रेस और CPI ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए इस मुद्दे को और हवा दी है।

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