सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार द्वारा दोषियों की जल्द रिहाई के खिलाफ बिलकिस बानो सहित अन्‍य याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश जवाबी दलीलों पर बुधवार को सुनवाई शुरू कर दी है।

2002 के गोधरा दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और तीन साल की बेटी सहित उसके परिवार के सदस्यों की हत्या के मामले में दोषियों को दी गई छूट के खिलाफ दायर याचिकाओं पर न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्‍ना और न्यायमूर्ति उज्‍ज्‍वल भुइयां की पीठ अंतिम सुनवाई कर रही है।

बिलकिस बानो की ओर से पेश वकील शोभा गुप्ता ने इस बात पर जोर दिया कि छूट का आदेश पारित करते समय तीन महत्वपूर्ण कारकों – अपराध की प्रकृति, उसका बड़े पैमाने पर समाज पर प्रभाव और पूर्ववर्ती मूल्य को ध्यान में नहीं रखा गया।

इस पर पीठ ने कहा कि दोनों पक्षों में संतुलन बनाना होगा, क्योंकि दोषियों का तर्क है कि उन्हें सुधार और समाज में फिर से शामिल होने का मौका दिया जाना चाहिए।

शीर्ष अदालत ने शोभा गुप्ता से कहा, “आप कह रहे हैं कि छूट बिल्कुल नहीं दी जानी चाहिए, जबकि उन्होंने निर्णय दिया है कि छूट आचरण में सुधार, पुन: एकीकरण आदि के उद्देश्य से है।”

शोभा गुप्ता ने दावा किया कि शीघ्र रिहाई के आदेश बिना दिमाग लगाए या अपराध की गंभीरता पर गौर किए बिना पारित कर दिए गए।

उन्‍होंने अदालत को बताया, “यह बंदूक की गोली से घायल होने का मामला नहीं है मिलॉर्ड्स! तीन साल की बेटी के सिर को पत्थरों से कुचल दिया गया था। आठ नाबालिगों की हत्या कर दी गई थी, जिसमें बिलकिस बानो की पहली संतान भी शामिल थी, जिसे पत्थर से कुचल दिया गया था। एक गर्भवती महिला के  साथ गिरोह बनाकर बलात्कार किया गया, उसकी मां के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। इस तरह की घृणितता, क्रूरता, बर्बरता किसी के साथ नहीं हुई होगी। ‘भयानक’ अपराध किया गया मिलॉर्ड्स!”

इससे पहले, दोषियों ने शीर्ष अदालत के समक्ष दलील दी थी कि उन्हें शीघ्र रिहाई देने वाले माफी आदेशों में न्यायिक आदेश का सार है और इसे संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका दायर करके चुनौती नहीं दी जा सकती।

दोषियों ने सजा में छूट देने के केंद्र और गुजरात सरकार के आदेशों के खिलाफ माकपा नेता सुभाषिनी अली, तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा, नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन, आसमां शफीक शेख और अन्य द्वारा दायर जनहित याचिकाओं (PIL) का विरोध किया है। उनका कहना है कि इस आपराधिक मामले में दूसरों को दखल देने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

मामले में दोषी ठहराए गए 11 लोगों को पिछले साल 15 अगस्त को रिहा कर दिया गया था, जब गुजरात सरकार ने अपनी छूट नीति के तहत उनकी रिहाई की अनुमति दी थी। कहा गया कि दोषियों ने जेल में 15 साल पूरे कर लिए थे।

शीर्ष अदालत इस मामले पर गुरुवार को भी सुनवाई जारी रखेगी।

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