लक्ष्मीपुर रेंज में ट्रॉम-वे रेल परियोजना पूरे चार दशक बंद रहने के बाद अब उत्तर प्रदेश के सोहगीबरवा सेंचुरी के जंगलों से फिर से छुक छुक करती जंगल की रानी रेल दौड़ेगी। 100 वर्ष पहले इस बहुमूल्य ट्रेन संपदा को दुर्गम वन क्षेत्र से मुख्य रेल लाइन तक लाने की शुरुआत जंगल की संपदा को मुख्य लेलो और मालगाड़ियों तक छोड़ने के लिए ट्रॉम-वे योजना शुरू की गई थी। लेकिन पिछले चार दशक यानि 1982 से यह बंद पड़ी थी। 1982 के बाद यूपी के इस जंगल में ट्रेनों की सेवाएं स्थगित कर दी गई थी, लेकिन अब इस जंगल के बारे में एक नई घोषणा हुई है कि ट्रेन सेवाएं अब दोबारा से शुरू की जाएंगी।
यह है रेल संपदा ऐतिहासिक विरासत के रूप में दर्शकों के आकर्षण का केंद्र रह गई थी। लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने एक बार फिर से जंगलों से 40 को से बंद पड़ी ट्रॉम-वे योजना को शुरू करने की पहल की है और जल्दी ही यह रेल फिर से घने जंगलों से गुजरते हुए जंगलों की रानी की तरह इठलाती बलखाती अपने सफर पर होगी। हम बात कर रहे हैं महाराजगंज सोगी बरवा सेंचुरी की इस वन्य जीव प्रभाग के लक्ष्मीपुर रेंज में ट्रॉम-वे रेल परियोजना की। आप सभी को पता है अंग्रेजों के समय में इसकी शुरुआत हो गई थी।
योगी सरकार में अब फिर से इसे जंगलों के रास्ते गुजरने के लिए महत्वपूर्ण पहल शुरू की है और इस बारे में फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के प्रमुख सचिव को नए सिरे से प्रोजेक्ट बनाने के निर्देश दिए गए हैं। प्रोजेक्ट को अमलीजामा पहनाने के लिए कंसलटेंट एजेंसी भी तय कर दी गई है और जल्द ही अगले वित्तीय वर्ष में इसको अमली जामा पहना कर तथा डीपीआर तैयार करके जंगलों की रानी हम सब के आकर्षण का केंद्र होगी।
जंगल की बहुमूल्य संपदा को दुर्गम वन क्षेत्र से मुख्य रेल लाइन तक लाने के लिए ब्रिटिश हुकूमत के दौरान वर्ष 1924 में लक्ष्मीपुर रेलवे स्टेशन के निकट देश की इस पहली ट्राम-वे रेल परियोजना को स्थापित किया गया था। इसके लिए लक्ष्मीपुर रेंज और उत्तरी चौक रेंज के जंगल में चौराहा नामक स्थान तक 22.4 किमी. दूरी तक रेल लाइन बिछाईं गई थी। लगातार 55 वर्षों तक यह ट्रॉम-वे जंगल में चली, लेकिन घाटे के बाद 1982 में गैप रेलवे परियोजना बंद पड़ी थी। इस रेल के 40 हार्स पॉवर के 4 इंजन, 26 बोगियां व सैलून, 2 निरीक्षण ट्राली सहित तमाम उपकरणों को लक्ष्मीपुर एकमा डिपो में रखा गया था। वर्ष 2009 में सरकार के निर्देश पर एक इंजन, एक सैलून एवं एक बोगी को लखनऊ चिड़ियाघर में सांस्कृतिक विरासत के रूप में सुरक्षित कर दिया था। लेकिन उत्तर प्रदेश शासन काल में योगी आदित्यनाथ की घोषणाओं के साथ जंगलों की यह परियोजनाएं फिर से देश के विकास का मुख्य हिस्सा होंगी।
40 सालों से बंद पड़ी ट्रॉम-वे रेल परियोजना ऐतिहासिक धरोहर धरोहर का हिस्सा बन गई थी। वर्ष 2015-16 में विरासत स्थल के रूप में ट्राम-वे रेल परियोजना लक्ष्मीपुर को सांस्कृतिक रूप से धरोहर के रूप में सहेजने का चयन किया गया था और सांस्कृतिक धरोहर की विरासत के रूप में लक्ष्मीपुर के एकमा में स्थित ट्राम-वे रेल परियोजना के प्रारंभिक बिंदू एकमा डिपो परिसर में रखे गए इंजन, टंडल, सैलून बोगी, स्पेशल बोगी, गार्डयान एवं अन्य उपकरणों को सुरक्षित रखा गया।
ब्रिटिश काल में कीमती लकड़ियों की ढुलाई के लिए ही इस ट्राम-वे रेल को शुरू कराया था। उस समय लोहे के रेल ट्रैक और लकड़ी के ही पुल हुआ करते थे। ट्रॉम-वे रेल जंगल में स्थित रोहिन नदी, प्यास नदी व जिगिनिहवा घाट पर बने लकड़ी के मजबूत पुलों से होकर दौड़ती थी। इस रेल का दिलचस्प इतिहास यही है, जो रेल की संपदा को महत्वपूर्ण बनाती है। यह लकड़ी के महत्व और उपयोगिता को बढ़ाने के लिए उसे मुख्यधारा से जोड़ने के लिए बनी थी। इसलिए वह उसे समय के लकड़ी के मजबूत पुलों की कहानी भी अपने इतिहास में समेटे हैं।
गत वर्ष जिलाधिकारी सत्येंद्र कुमार के निर्देशन में टीम के अभियंता विरेन त्रिपाठी के साथ लक्ष्मीपुर एकमा में संरक्षित इंजन, ट्रैक व पटरियों का निरीक्षण किया था। उस समय इस परियोजना को देवदह से जोड़ने व टेढ़ी तक चलाने की संभावनाओं पर गहन चर्चा की गई थी। इसी क्रम में एकमा डिपो में ट्रॉम-वे ट्रैक की खुदाई कराकर नीचे लगी लकड़ी की पटरियों की गुणवत्ता पर फिर से अध्ययन करने की कवायद शुरू हुई।
जानकार सूत्रों के मुताबिक जंगलों की रानी ट्रॉम-वे परियोजना को इस वित्तीय वर्ष में जल्दी सड़कों पर दौड़ने के लिए कवायद तेज होगी और जल्द ही है जंगलों से गुजरते हुए हमारे आकर्षण का केंद्र होगी।