371 करोड़ रुपए के कथित स्किल डेवलपमेंट घोटाले में सीआईडी की गिरफ्त में आए आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्‍यमंत्री और तेलुगु देशम पार्टी के अध्‍यक्ष एन चंद्रबाबू नायडू की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सीआईडी की ओर से उनके खिलाफ दर्ज मामले को रद्द करने के लिए दायर याचिका को खारिज कर दिया।

भारत के मुख्य न्यायाधीश धनंजय वाई चंद्रचूड़ ने नायडू के वकील सिद्धार्थ लूथरा से मानदंडों का पालन करने के बाद सुनवाई की तारीख मांगने को कहा। लूथरा ने 8 सितंबर से नायडू की हिरासत का हवाला देते हुए सुनवाई की जल्द तारीख मांगी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिका पर विचार नहीं कर सकते क्योंकि यह उल्लेखित मामलों की सूची में नहीं है।

दिशा-निर्देशों के अनुसार, सुनवाई की तारीख तय करने के लिए किसी मामले का उल्लेख तभी किया जा सकता है जब उसे संबंधित रजिस्ट्रार द्वारा तैयार की गई सूची में जगह मिल जाए, जो बदले में विभिन्न श्रेणियों के मामलों के लिए तारीखें तय करने के लिए निर्धारित नियमों द्वारा निर्देशित होता है।

आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा मामले में प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) को रद्द करने की उनकी याचिका खारिज करने के एक दिन बाद, नायडू ने शनिवार को अदालत का रुख किया और अपनी गिरफ्तारी को ‘शासन का बदला और राजनीतिक प्रतिशोध’ का उदाहरण बताया।

उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि जांच “पूरी होने के कगार पर” थी और मामले में नायडू की कथित भूमिका की जांच के लिए किसी पूर्व मंजूरी की आवश्यकता नहीं थी। नायडू ने शीर्ष अदालत के समक्ष अपनी अपील में कहा कि 21 महीने पहले दर्ज की गई एफआईआर में उनका नाम अचानक शामिल किया गया था।

उनको अवैध तरीके से गिरफ्तार किया गया था और केवल राजनीतिक कारणों से प्रेरित होकर उसकी स्वतंत्रता से वंचित किया गया था और भले ही उसके खिलाफ कोई सामग्री नहीं थी, फिर भी उनको अवैध रूप से प्रेरित जांच के माध्यम से पीड़ित किया जा रहा है, जो उसके मौलिक अधिकार का स्पष्ट उल्लंघन है।

अधिवक्ता गुंटूर प्रमोद कुमार के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया कि विधानसभा चुनाव नजदीक थे और नायडु ने रैलियों का आयोजन करना शुरू कर दिया था। सियासी रंजिश की वजह से उनके खिलाफ कार्रवाई हुई है। आरोप लगाया कि आंध्र प्रदेश सीआईडी सरकार के इशारे पर काम कर रही है। नायडु, उसके परिवार और पार्टी को फंसाने के लिए अधिकारियों और अन्य लोगों को धमकी दे रही है।

याचिका में आगे इस बात पर जोर दिया गया कि जांच शुरू करने और उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17-ए के तहत अनिवार्य मंजूरी आवश्यक थी क्योंकि मामले में सभी कथित कृत्य उनके द्वारा लिए गए निर्णयों से संबंधित थे। मुख्यमंत्री के रूप में अपने आधिकारिक कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए।

बता दें कि नायडू के खिलाफ जांच एक ऐसी योजना पर केंद्रित है, जिसमें कथित तौर पर कौशल विकास परियोजना के लिए सरकारी धन को फर्जी चालान के माध्यम से विभिन्न शेल कंपनियों में स्थानांतरित किया गया था, जो सेवाओं की डिलीवरी के अनुरूप नहीं थे। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और बाद में 10 सितंबर को मामले में न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था।

 

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