बीजेपी पिछले कुछ महीनों से देश के 160 लोकसभा सीटों पर कड़ी मेहनत कर रही है, जिसे पार्टी अपने लिए कमजोर मान रही है। इनमें से अधिकतर सीटें दक्षिण और पूर्वी भारत में हैं। कई ऐसी सीटें भी हैं, जिस पर भाजपा जीत तो चुकी है, लेकिन फिर भी पार्टी उसे चुनौती की तरह देखती है।
जानकारी के मुताबिक इन 160 सीटों पर पार्टी लोकसभा चुनावों की घोषणा से काफी पहले उम्मीदवारों के नाम का ऐलान करना चाहती है। पार्टी को उम्मीद है कि पहले से नाम की घोषणा हो जाने से विरोधी उम्मीदवारों के मुकाबले जनाधार तैयार करने का अधिक समय मिल सकता है। पार्टी ने शायद पहली बार मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभाओं के लिए भी यह प्रयोग किया है।
जानकारी के मुताबिक जिन 160 ‘कमजोर’ सीटों पर बीजेपी फोकस कर रही है, उनमें से कुछ चुनाव क्षेत्र राजनीतिक तौर पर दिग्गज नेताओं की सीटें हैं। इन सीटों को पार्टी ने 40 क्लस्टरों में बांटकर कई केंद्रीय मंत्रियों से लेकर वरिष्ठ नेताओं तक के सघन अभियान करवाए हैं। पिछले कुछ महीनों हफ्तों तक ये नेता क्षेत्र में रहकर वहां की परिस्थितियों को समझा है और वोटरों के मन को टटोलने की कोशिश की है।
पार्टी जिन लोकसभा सीटों को अपने लिए चुनौतीपूर्ण मानती रही है, उनमें उत्तर प्रदेश की रायबरेली और मैनपुरी जैसी चर्चित सीटें भी शामिल हैं। इनमें से पहले पर कांग्रेस नेता सोनिया गांधी का कब्जा रहा है तो दूसरी सीट पर सपा की फर्स्ट फैमिली मुलायम सिंह यादव के परिवार से कोई न कोई जीतता रहा है। अभी यहां से यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव सांसद हैं।
पार्टी के लिए ये ‘कमजोर’ सीटें कितनी महत्वपूर्ण हैं, इसका अंदाजा इसी से लग सकता है कि ऐसी सीटों पर भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा या केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की कोई न कोई रैली हो चुकी है। जानकारी है कि पार्टी इस रणनीति पर काम कर रही है कि अगर ऐसी ‘कमजोर’ सीटों पर उम्मीदवारों के नाम पहले से तय होंगे, तो उन्हें क्षेत्र में अपनी उपस्थिति जमाने के लिए काफी समय मिलेगा। इससे पार्टी की चुनावी संभावनाएं बढ़ाने में सहायता मिलेगी।
लेकिन, बीजेपी की लड़ाई इसलिए कठिन है कि इनमें से अधिकतर सीटें ऐसे राज्यों में है, जहां पार्टी अभी तक अपने दम पर प्रभावी भूमिका में नहीं आ सकी है। जानकारी के अनुसार पार्टी लीडरशिप इस साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनावों के बाद इन उम्मीदवारों के नामों को घोषित करने के बारे में फैसला ले सकती है।
बीजेपी के लिए जिन 160 ‘कमजोर’ सीटों की बात हो रही है, उनमें से अधिकतर पर 2019 के लोकसभा सीटों में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन, ऐसा नहीं है कि इन सब सीटों पर पार्टी हारी ही है। इनमें से कुछ ऐसी सीटें भी हैं, जिसपर पार्टी जीती तो है, लेकिन वहां के राजनीतिक समीकरणों को देखते हुए वह किसी तरह का जोखिम नहीं लेना चाहती।
मसलन, हरियाणा में रोहतक और उत्तर प्रदेश में बागपत सीट 2019 में भाजपा ही जीती थी। लेकिन, 2024 के लोकसभा चुनाव में जीत सुनिश्चित करने के लिए वह यहां इस बार भी किसी तरह से कोई गुंजाइश रहने देने के मूड में नहीं है। जानकारी के मुताबिक पार्टी ऐसी सभी सीटों पर अपने संगठन को तो मजबूत कर ही रही है, जन-संपर्क अभियानों पर भी पूरा जोर लगा रही है। इनमें पिछले 9-10 साल की मोदी सरकार की लोक-कल्याणकारी योजनाओं के बारे में प्रचार-प्रसार पर काफी ध्यान दिया जा रहा है।
2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भी बीजेपी ने अपने हिसाब से मुश्किल सीटों की पहचान करके उसके लिए खास रणनीति तैयार की थी। पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह उन चुनावों को खुद देख रहे थे। नतीजा ये हुआ कि ऐसी अनेकों मुश्किल लग रही सीटों पर पार्टी को सफलता मिली थी। यही वजह है कि बीजेपी को लोकसभा की 543 सीटों में से 2014 की 282 सीटों के मुकाबले 2019 के लोकसभा में 303 सीटें मिली थीं।