दक्षिण अफ्रीकी और नामीबियाई चीते (Cheetah) आगामी 15 अगस्त के बाद जंगल में आजादी के साथ घूम सकेंगे। ये चाहें तो कूनो के जंगल से बाहर निकलकर दूसरे अभयारण्य सहित उत्तर प्रदेश की सीमा के जंगल तक फर्रादा भरकर अपनी मर्जी से टेरेटरी तय कर सकेंगें। दरअसल बीते रोज चीता प्रोजेक्ट, स्टीयरिंग कमेटी और एनटीसीए के अधिकारियों सहित मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के वन अधिकारियों की संयुक्त बैठक हुई थी।

चीता प्रोजेक्ट, एनटीसीए सहित मप्र वन विभाग के अलावा अधिकारियों की बीते रोज बैठक आयोजित की गई थी। इसमें कूनो के जंगल से बार-बार चीतों के बाहर निकल जाने को लेकर चर्चा हुई। बैठक में उत्तर प्रदेश वन विभाग के अधिकारी भी मौजूद थे। विशेषज्ञों और अधिकारियों ने परामर्श दिया कि चीतों को फ्री रेंज फॉरेस्ट मिलना चाहिए। चीता स्टीयरिंग कमेटी के चेयरमैन डॉ. राजेश गोपाल ने बैठक में बताया कि चीतों को अधिक समय तक बाड़े में रखना या जंगल की सीमा में बांधे रखना उचित नहीं है। वे जंगल में अपने लिए उचित स्थान खुद तलाश का आशियाना बनाते हैं। उन्हें फ्री छोड़ा जाना चाहिए।

नामीबियाई और दक्षिण अफ्रीकी चीते अब जल्द ही मध्य प्रदेश के कूनो से लेकर उत्तर प्रदेश व राजस्थान सीमा के जंगल में फर्राटा भरते नजर आ सकेंगे। कारण चीता प्रोजेक्ट के तहत अब उन्हें कूनो में तो छोड़ा जाएगा, लेकिन वे अपनी मर्जी से आसपास के जंगलों को भी अपना ठिकाना बना सकेंगे। कूनो के जंगलों की परीधि से बाहर वे अपनी मर्जी से टेरेटरी चुनकर बसेरा बना सकेंगे। हालांकि इस दौरान प्रत्येक चीते के पीछे ट्रैकिंग टीमें मॉनीटरिंग जरूर करेंगी। बता दें कि

फ्री रेंज फॉरेस्ट में चीते एमपी से यूपी की सीमा तक अपने हिसाब से जंगल व एरिया को एक्सप्लोर कर ठिकाना तय कर सकेंगे। उन्हें तब तक छेड़ा नहीं जाएगा या ट्रैंकुलाइज कर वापस कूनो नहीं लाया जाएगा जब तक उनकी जान को या उनसे किसी को खतरा न हो। यह निर्णय ​इसलिए लिया गया है क्योंकि कूनो से सबसे पहले नामीबियाई चीता पवन (ओबान) उसकी जोड़ीदार मादा चीता आशा और अब दूसरी मादा चीता कूनो के जंगल से बाहर निकलकर सामान्य वन मंडल की सीमा तक जा रहे हैं।

वन विभाग सूत्रों के मुताबिक चीता प्रोजेक्ट को लेकर एनटीसीए, चीता स्टीयरिंग कमेटी व एमपी-यूपी वन विभाग के अधिका​रियों की बैठक में तय किया गया है कि आगामी 15 अगस्त के बाद चीतों को जंगल में फ्री रेंज किया जाएगा। हालांकि इसके पहले दोनों प्रदेश के वन विभाग के अधिकारी अपने-अपने इलाकों के फॉरेस्ट को लेकर आवश्यक तैयारी जरूर करेंगे, ताकि चीतों के एरिया में पहुंचने के बाद विपरीत परिस्थितियों का सामना न करना पड़े।

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