ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान में की गयी कार्रवाई और उसके जवाब में पाकिस्तान की ओर से किये गये हमले के प्रयास के दौरान भारत की वायु रक्षा प्रणाली की पहली परीक्षा हुई जिसमें वह सौ प्रतिशत अंकों से सफल हुई। हम आपको बता दें कि रूस की एस-400 के अलावा स्वदेशी आकाश मिसाइल रक्षा प्रणाली ने भी पाकिस्तानी हमलों से देश को बचाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी। आकाश मिसाइल को विकसित करने में 15 साल तो लगे ही थे साथ ही इसमें एक हजार वैज्ञानिकों और देश भर में स्थित कई रक्षा प्रयोगशालाओं के संयुक्त प्रयास भी लगे थे। इस प्रणाली ने पाकिस्तान के साथ पश्चिमी सीमाओं पर अपनी पहली युद्धक्षेत्र परीक्षा सफलतापूर्वक पास की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कहा भी है कि दुनिया ने देखा है कि कैसे पाकिस्तान के ड्रोन्स और पाकिस्तान की मिसाइलें, भारत के सामने तिनके की तरह बिखर गईं। भारत की सशक्त वायु रक्षा प्रणाली ने उन्हें आसमान में ही नष्ट कर दिया।

हम आपको बता दें कि 8 और 9 मई की रात को पाकिस्तान की ओर से हुए ड्रोन और मिसाइल हमलों का सफलता पूर्वक सामना कर आकाश मिसाइल रक्षा प्रणाली ने अपनी उपयोगिता साबित की है। भारतीय सैन्य अधिकारियों ने भी आकाश और एस-400 जैसी मिसाइल रक्षा प्रणालियों की प्रभावशीलता की पुष्टि की है। सोमवार को वायुसेना के डीजीएमओ एयर मार्शल एके भारती ने कहा था कि भारत की रक्षा प्रणाली “एक दीवार की तरह खड़ी रही” और दुश्मन की घुसपैठ को रोक दिया।

हम आपको बता दें कि आकाश द्वारा अपनी पहली ‘अग्नि परीक्षा’ पास करने और रक्षा उत्पादन में भारत की ‘आत्मनिर्भरता’ को बढ़ावा देने से इस परियोजना के निदेशक और पूरी तरह स्वदेशी मिसाइल शील्ड कार्यक्रम के प्रमुख रहे डॉ. प्रह्लादा रामाराव बेहद खुश हैं। पद्मश्री से सम्मानित रामाराव ने कहा है कि जब मेरी संतान (आकाश) ने इतना अच्छा प्रदर्शन किया, तो मेरी आंखों में आंसू आ गए। यह मेरे जीवन का सबसे सुखद दिन है। यह मेरे पद्म पुरस्कार से भी बड़ा है।

हम आपको बता दें कि वैसे तो आकाश मिसाइल पहले कई परीक्षणों से गुजरी थी और बाद में थल सेना और वायुसेना द्वारा भी इसके कई परीक्षण किए गये थे, लेकिन यह पहली बार था जब इसने असली युद्धक्षेत्र की स्थिति में काम किया, जब पाकिस्तान ने मिसाइलों और ड्रोन से भारत पर हमला किया। हम आपको बता दें कि भारतीय सेना और वायुसेना दोनों ने इस प्रणाली को पश्चिमी सीमा पर रणनीतिक रूप से तैनात किया है, क्योंकि आकाश में लड़ाकू विमानों, क्रूज मिसाइलों, एयर-टू-सर्फेस मिसाइलों और यहां तक कि ड्रोन जैसे हवाई लक्ष्यों को नष्ट करने की क्षमता है। इसका रीयल टाइम मल्टी-सेंसर डेटा प्रोसेसिंग और खतरे का मूल्यांकन एक ही समय में किसी भी दिशा से कई लक्ष्यों को भेदने में इसे सक्षम बनाता है।

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक रामाराव ने कहा, “हमने इस परियोजना पर 1994 में 300 करोड़ रुपये के प्रारंभिक बजट से काम शुरू किया था।” उन्होंने कहा कि जब आप कुछ नया बनाते हैं, तो कई बार असफलता मिलती है। हमें भी मिली। लेकिन हमने अपनी गलतियों से सीखा। उन्होंने कहा कि बाद में इस परियोजना का बजट बढ़ाकर 500 करोड़ रुपये कर दिया गया। उन्होंने आगे कहा, “मैं आपको गारंटी दे सकता हूं, दुनिया में कहीं भी सिर्फ 500 करोड़ रुपये में मिसाइल रक्षा प्रणाली नहीं बनाई जा सकती थी। हमारा आकाश सबसे सस्ता लेकिन सबसे प्रभावी मिसाइल शील्ड है। यह 70 किमी दूर से दुश्मन की मिसाइल का पता लगा सकता है और 30 किमी के भीतर उसे नष्ट कर सकता है।”

78 वर्षीय डीआरडीओ वैज्ञानिक रामाराव ने बताया है कि 2009 में इसके विकास के बाद से आकाश प्रणाली लगातार विकसित होती रही, जिसके तहत विभिन्न क्षमताओं से युक्त कई वेरिएंट बनाए गए जो अलग-अलग परिचालन आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। इनमें प्रारंभिक मार्क-I, स्वदेशी सीकर से युक्त अपग्रेडेड आकाश-1एस, ऊंचाई और कम तापमान में सटीकता से काम करने वाला आकाश प्राइम और लंबी दूरी व अत्याधुनिक विशेषताओं वाला आकाश-एनजी शामिल हैं।

अनुमान के अनुसार, भारतीय वायुसेना ने आकाश की लगभग 15 स्क्वॉड्रन तैनात की हैं, जबकि सेना चार रेजीमेंट संचालित कर रही है और अपनी वायु रक्षा क्षमताओं को और मजबूत करने के लिए इसकी और खरीद की योजना है। हम आपको यह भी बता दें कि आकाश के प्रभावी प्रदर्शन से प्रभावित होकर आर्मेनिया, वर्ष 2022 में भारत से लगभग 6,000 करोड़ रुपये की लागत से 15 आकाश मिसाइल प्रणालियां खरीदने वाला पहला देश बना। पिछले साल भारत ने इस मध्य एशियाई देश को अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए इन प्रणालियों की पहली खेप भेज दी थी।

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