सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम लड़के और हिंदू लड़की के साथ रहने पर ऐतराज जताने के लिए उत्तराखंड सरकार को फटकार लगाई है. कोर्ट ने छह महीने से जेल की सजा काट रहे मुस्लिम शख्स को जमानत देते हुए कहा कि राज्य सरकार को उनके साथ रहने पर ऐतराज जताने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि दोनों इस उम्र में हैं कि वो अपने फैसले ले सकते हैं और अपने घर वालों की रजामंदी से उन्होंने शादी की.

जस्टिस बी. वी. नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच याचिकाकर्ता अमान सिद्दीकी उर्फ अमन चौधरी की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी. अमान को उत्तराखंड फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट, 2018 और भारतीय न्याय संहिता, 2023 के तहत अपनी धार्मिक पहचान छिपाने और हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हिंदू लड़की से धोखे से शादी करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. अमान ने फरवरी में उत्तराखंड हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी, लेकिन उन्हें जमानत नहीं मिली. 

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा, ‘राज्य सरकार को याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी के साथ रहने पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए क्योंकि एक तो दोनों बालिग हैं, अपने लिए फैसले ले सकते हैं. दूसरा उनकी शादी में उनके माता-पिता और परिवार की अनुमति भी शामिल है.’ कोर्ट ने साफ किया कि चल रही आपराधिक कार्यवाही दोनों के साथ रहने के लिए बाधा नहीं बनेगी.

सिद्दीकी के वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उनके मुवक्किल की शादी अरेंज मैरिज थी, लेकिन थोड़े समय बाद ही कुछ लोग और संगठन उनकी शादी पर आपत्ति जताने लगे और पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करवा दी. उन्होंने यह भी कहा कि अगर उनके मुवक्किल को जमानत मिल जाती है तो कपल अपने परिवारों से अलग रहेगा और शांति से जीवन व्यतीत करेगा. इसके बाद बेंच ने तुरंत याचिकाकर्ता को जमानत देने का आदेश दे दिया. 

वकील ने कहा कि सिद्दीकी की शादी दोनों परिवारों की रजामंदी से हुई और याचिकाकर्ता ने शादी के अगले ही दिन एफिडेविट भी जमा किया था कि उसने अपनी पत्नी पर धर्म बदलने के लिए कोई दबाव नहीं बनाया है. दोनों अपने-अपने धर्म का पालन करने के लिए आजाद हैं.

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