राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने हाल ही में हिंदू धर्म को “सबके कल्याण की कामना करने वाला विश्व धर्म” कहा। उनके अनुसार, हिंदू धर्म की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह सबको स्वीकार करने और मानवता की सेवा करने की भावना को प्रोत्साहित करता है। भागवत ने यह भी कहा कि हिंदू धर्म केवल भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं, बल्कि यह एक वैश्विक धर्म है जो सभी के कल्याण की कामना करता है। डॉ. भागवत ने हिंदू धर्म के अनुयायियों को “विश्व का सबसे उदारतम मानव” बताया। उन्होंने कहा कि हिंदू व्यक्ति की पहचान उसकी सबके प्रति सद्भावना और सभी चीजों को स्वीकार करने की प्रवृत्ति से होती है। भागवत ने यह भी उल्लेख किया कि हिंदू धर्म का ज्ञान विवाद उत्पन्न करने के बजाय, दूसरों को शिक्षा देने और मार्गदर्शन करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
डॉ. मोहन भागवत ने हाल ही में अलवर के इंदिरा गांधी खेल मैदान में स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए कहा कि देश को “समर्थ” और “संपन्न” बनाने के लिए मेहनत और प्रतिबद्धता के साथ काम करना जरूरी है। उन्होंने स्पष्ट किया कि केवल प्रयास और पुरुषार्थ ही हमें राष्ट्र की समृद्धि की दिशा में आगे बढ़ा सकते हैं।
भागवत ने अपने भाषण में कहा कि हिंदू समाज को देश की स्थिति के लिए उत्तरदायी माना जाता है। उनके अनुसार, यदि देश में कोई सकारात्मक बदलाव होता है और राष्ट्र की स्थिति सुधरती है, तो इसका श्रेय हिंदू समाज को जाता है। वहीं, यदि देश में कुछ गड़बड़ होती है या समस्याएं बढ़ती हैं, तो इसका दोष भी हिंदू समाज पर लगाया जाता है। इस तरह, हिंदू समाज की भूमिका राष्ट्र की प्रगति और असफलता दोनों में महत्वपूर्ण मानी जाती है।
डॉ. भागवत ने स्वयंसेवकों से छुआछूत और ऊंच-नीच की भावना को पूरी तरह मिटाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि समाज को स्वार्थ के अधीन होकर छुआछूत जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, और इसे खत्म करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। भागवत ने कहा कि संघ की शक्ति के प्रभाव क्षेत्र में मंदिर, पानी, और श्मशान सभी के लिए खुले रहना चाहिए और समाज में बदलाव लाने की दिशा में काम करना होगा।
भागवत ने स्वयंसेवकों से सामाजिक समरसता, पर्यावरण, परिवार प्रबोधन, स्व की भावना और नागरिक अनुशासन जैसे पांच महत्वपूर्ण विषयों को अपने जीवन में अपनाने की अपील की। उन्होंने कहा कि जब स्वयंसेवक इन बातों को अपने जीवन में उतारेंगे, तो समाज भी इनका अनुसरण करेगा। अगले वर्ष संघ के 100 वर्षों के कार्यकाल को पूरा करने के संदर्भ में उन्होंने संघ की कार्य पद्धति और उसके पीछे के विचारों को समझने की आवश्यकता की बात की।
डॉ. मोहन भागवत ने अपने हालिया भाषण में कहा कि पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को बहुत कम लोग जानते थे और मानते थे, लेकिन अब स्थिति बदल गई है। उन्होंने उल्लेख किया कि आज संघ को केवल समर्थक ही नहीं, बल्कि विरोधी भी इसे पहचानते हैं और मानते हैं। यह बदलती धारणा संघ के काम और उसकी प्रभावशीलता को दर्शाती है। भागवत ने अपने संबोधन में हिंदू धर्म, हिंदू संस्कृति और हिंदू समाज के संरक्षण की आवश्यकता पर बल दिया। उनके अनुसार, इन तत्वों का संरक्षण राष्ट्र की समग्र उन्नति के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने यह भी कहा कि हिंदू संस्कृति और मूल्यों को बचाए रखना केवल एक धार्मिक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि यह राष्ट्र के विकास के लिए भी आवश्यक है। डॉ. भागवत ने चिंता व्यक्त की कि भारत में पारिवारिक संस्कारों को खतरा है और नई पीढ़ी तेजी से अपने सांस्कृतिक मूल्यों और परंपराओं को भूल रही है।
डॉ. मोहन भागवत के हालिया कार्यक्रम में कुल 2,842 स्वयंसेवकों ने भाग लिया। यह कार्यक्रम इन्दिरा गांधी खेल मैदान, अलवर में आयोजित किया गया था, जहां स्वयंसेवकों ने डॉ. भागवत के विचारों को सुना और उनके दिशा-निर्देशों को अपनाने का संकल्प लिया। भाषण के बाद, डॉ. भागवत भूरा सिद्ध स्थित मातृ स्मृति वन में पहुंचे। यहां उन्होंने पौधारोपण किया, जो पर्यावरण संरक्षण और हरियाली बढ़ाने के प्रति उनके समर्पण को दर्शाता है। पौधारोपण की यह गतिविधि संघ के सामाजिक और पर्यावरणीय पहल का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य जागरूकता फैलाना और समाज को प्रोत्साहित करना है।
डॉ. भागवत 17 अगस्त तक अलवर में रहेंगे और इस दौरान विभिन्न गतिविधियों में शामिल होंगे। उनके अलवर प्रवास के दौरान, वे संघ की विभिन्न पहलों, सामाजिक कार्यों और स्वयंसेवकों के साथ बैठकें करेंगे, ताकि संगठन के उद्देश्यों और योजनाओं को आगे बढ़ाया जा सके। इस कार्यक्रम ने डॉ. मोहन भागवत की सक्रियता और संघ के सामाजिक कार्यों को उजागर किया। स्वयंसेवकों की बड़ी संख्या में भागीदारी और पौधारोपण जैसी गतिविधियां संघ के उद्देश्यों की पूर्ति में महत्वपूर्ण कदम हैं। डॉ. भागवत का अलवर प्रवास संघ की गतिविधियों और समाज के प्रति उसकी जिम्मेदारी को दर्शाता है।